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मंगलवार, 2 जुलाई 2013

एक मन्ज़र


कच्चा सा एक मकां कहीं आबादियों से दूर
 छोटा सा एक हुजरा फराज़े मकान पर 
सब्ज़े से झांकती हुई खपरैल वाली छत 
दीवारे चोब पर कोई मौसम की सब्ज़ बेल
 उतारी हुई पहाड़ पर बरसात की वो रात 
कमरे में लालटेन की हल्की सी रोशनी 
वादी में घूमता हुआ एक चश्म -ए -शरीर 
खिड़की को चूमता हुआ बारिश का जलतरंग 
साँसों में गूंजता हुआ एक अनकही का भेद 
                                                         -परवीन शाकिर 

5 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

heaven present on earth
shandar!
hndi padhne lagungii is tarah to mai!

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन दिल और दिमाग लगाओ भले बन जाओ - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Udan Tashtari ने कहा…

गज़ब!

Ankur Jain ने कहा…

शानदार।।।

Neeta Mehrotra ने कहा…

बहुत उम्दा