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रविवार, 12 अप्रैल 2015

तुम्हारी आमद पर


मौसम -ए -वीरां का , बहक कर यूं शराबी होना 
तेरी आमद पे ' फ़ज़ा  का ,       यूं गुलाबी होना  

शहर का शहर ही , रक्साँ  है , तेरे इश्क़ में यूं तो 
उसपे पाँवों  में मेरे यार !         यूं गुर्गाबी  होना 

इश्क़ सचमुच  ही खुदा ही की रज़ा से है  रोशन 
सब पे अफ्ज़ा   नहीं  यूं ,   राज़े -शिहाबी होना
 
मैं  तो मुन्किर हूँ, कि  तुझ में ख़ुदा  पाया है   
आपने देखा यूं आबिद का       वहाबी होना!  

इश्क़ में कोई तो तासीर छुपी होती है सच्ची सी 
वरना दहकती सी तपिश का यूं  इंक़लाबी होना 

सोंच ये मोजज़ा बस  तेरी ही खातिर तो है जानां ! 
झुलसी सी तपिश रुत में  बारिश का नवाबी होना
                                                                     सहबा जाफ़री   
गुर्ग़ाबी - कांच के क़ीमती जूते , अफ्ज़ा - ज़ाहिर होना , मुन्किर- नास्तिक , वहाबी - इंकार करने वाला , मोजज़ा - करिश्मा , शिहाबी - प्रकाशमान 
                                                        प्रस्तुति : लोरी