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रविवार, 27 मई 2012

उठो लाल अब आँखें खोलो...

उठो लाल अब आँखें खोलो
पानी लाई हूँ मुहं धोलो

बीती रात कमलदल फूले
उनके ऊपर भौंरे झूले

(एक लाइन भूल गयी)
बहने लगी हवा अति सुन्दर

नभ में न्यारी लाली छाई
धरती पर प्यारी छवि आयी।

मेरे बचपन की धरोहर, मेरे सुहाने दिनों की याद, और "माणक बहिन जी " का पहला पहला मनोबल बढ़ने वाला कथन" छोरी! तेरे पप्पा से कहना, बहिन जी ने कहलवाया है तू पढ़ने में बड़ी अच्छी है, तुझे खूब पढाये!!!" मै तो उस समय बड़ी खुश हुई, पर घर आकर भूल गयी। शाम हुई दादी बाड़े में लिपी हुई ज़मीन पर पानी डाल जब नीम के नीचे आ धमकी मुझे कुछ याद आया; "दादी!" मै हौले से बोली। " हूँ" वह तज्बीह के दाने फेरते फेरते बेज़ारी से मुझे देखने लगीं. "सुनो! मै ना! पढ़ाई में बहुत अच्छी हूँ"
"आयी हाई! तुझे किसने कहा, अरे दिन भर, रस्सी टप्पा, लंगडी टांग!!!
देखो ज़रा!!! ये पढाई में अच्छी हैं, अलिफ़ का नाम भाला !!!!!!"
दादी आज तो मुझे इत्ती बुरी लगी कि बस!!!अब मंगाना मुझसे पान, कोई लाके दे दू मै? मैंने भी मन ही मन अहद कर लिया। उन्हें देखा भी नही, उनके चबूतरे से चिडिया सी उडी और मैदान में वोलिबोल खेलते पप्पा के पास आ गयी; "पप्पा!"
"हाँ बिट्टू!" कोई खास ध्यान नहीं दिया पप्पा ने। "कुछ तो नहीं!" पैर पटकते पटकते भाई के पास आ गयी; "ऐ भैया! आज ना...."
-" तू फस्ट गीयर में मत चला कर यार! जल्ली बोल!"
-कुछ नहीं जा! नहीं बताती।
-मत बता, भाग यहाँ से बिल्ली कहीं की!
चची,...तो मोंटू की पोटी धुला रही है, अप्पी को तो टाइम नहीं, गुड्डन बिट्टन भी काम में लगी है, कुरआन पढ़ाने वाली आपा तो जा भी चुकी हैं, अम्मा रोटी बनाते वक्त किसी की सुनती नहीं, दीनियात के हाफिज़ जी को बता के क्या होगा! कैसी सिसक सी पडी मै!
फिर शाम हुई, रात गयी और बात गयी।
एम् फिल, पी एचडी नौकरी और शादी।
"माँ! भोर पर कोई कविता लिख दो ना, मेडम ने मंगाई है"
-बेटे अब्बू से लिखवा लो, मुझे अभी बहुत से काम हैं।
"नहीं लिख सकती यूं कहो! काम की आड़ मत लो! (बच्चों के अब्बू का चिरपरिचित लहज़ा! मुझसे कोई काम करवाना हो तो ये ऐसे ही करते हैं)
मैंने बेलन एक तरफ रक्खा, कमर में पल्लू खोंसा, और बोली लिखो नन्हे!
"उठो लाल अब आँखे खोलो...."
कविता पूरी हुई, ये शरारत से मेरे पास आकर खड़े हुए और कहने लगे सुनो!
-क्या है! (मैंने आँखें तरेरी)
"तुम ना! पढाई में बहुत अच्छी रही होगी"।








13 टिप्‍पणियां:

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

उस समय भी हम ब्लॉगर होते जब हमारी भावनाओं को कोई सुनता नहीं था तो कितना अच्छा होता! लिखकर नेट को सौंप देते अपने फरियाद।

उम्मतें ने कहा…

(१)
पक्का नहीं कह सकते ! शायद भूली हुई लाइन ये भी हो सकती है ...

'सूरज निकला चिडियाँ बोलीं'

(२)
आपके ये भी पढ़ाई में बहुत अच्छे रहे होंगे वर्ना शरारतन आपकी तारीफ़ कैसे कर पाते :)

(३)
इस तरह से अपने बचपन को याद कर पाना , जो कसक / खलिश जेहन में रह गई हो उसे अपने बच्चों से दूर रखने की कवायद ! साबित ये होता है कि लिखने वाला बंदा बचपन में भी बेहतर था और अब भी बेहतर है ! रोल्स चाहे बदल भी गये हों तो क्या ?

बेनामी ने कहा…

hanji!!! bilkul sahi farmaya apne.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

चिड़िया चहक उठी पेड़ों पर...स्मिता।
http://ismita-lifegoeson.blogspot.in/

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
उम्मतें ने कहा…

मेरी टिप्पणी कहां चली गई ? चलिए उसका पहला हिस्सा तो देवेन्द्र जी और स्मिता बिटिया के हवाले से दुरुस्त हुआ !

Smart Indian ने कहा…

वही समाज, वही कहानी!

lori ने कहा…

अल्लाह अली जी!
पता नहीं कैसे आपकी टिप्पणी स्पैम में चली गयी थी
मैंने धुंध निकली, सच कहूं ,बड़ी घबरा गयी थी मै!!!
कही आप नाराज़ तो नहीं हो गए!!!
खैर आपका शुक्रिया!!!

lori ने कहा…

पता नहीं कैसे आपकी टिप्पणी स्पैम में चली गयी थी !!

lori ने कहा…

:)

उम्मतें ने कहा…

टिप्पणी स्पैम में गई होगी आप चेक कर लीजिए , ये कहने ही वाला था कि आपने उसे ढूंढ निकाला ! गूगल की मेहरबानी से अक्सर ऐसा होता है आप कम से कम एक बार स्पैम चेक कर लिया कीजिये ! दूसरों की टिप्पणी भी वहां गुम हो सकती हैं !

बहरहाल टिप्पणी की पहली लाइन तो देवेन्द्र पाण्डेय जी और स्मिता बिटिया के सौजन्य से दुरुस्त हुई ,मुझे पक्का याद भी नहीं था !

आप अपनी पोस्ट को एडिट करते हुए कविता की भूली हुई लाइन जोड़ दीजिए ! अच्छा लगेगा !

Unknown ने कहा…

उठो लाल अब आँखें खोलो
पानी लाई हूँ मुहं धोलो

बीती रात कमलदल फूले
उनके ऊपर भौंरे झूले

चिड़िया चहक उठी पेड़ो पर
बहने लगी हवा अति सुन्दर

नभ में न्यारी लाली छाई
धरती पर प्यारी छवि आयी।

इतना सुन्दर समय न खोओ
जागो बेटा अब मत सोओ।

Unknown ने कहा…

मुझे इस कविता से अपने पुकराने स्कूल के दिन याद आ गए।