मै वह भाषा हूँ जिसमे तुम गाते हँसते हो
मै वह भाषा हूँ जिसमे तुम, अपने सुख दुःख रचते हो
मै वह भाषा हूँ जिसमे तुम सपनाते हो, अलसाते हो
मै वह भाषा हूँ जिसमे तुम, अपनी कथा सुनाते हो
मै वह भाषा हूँ जिसमे तुम, जीवन साज़ पे संगत देते
मै वह भाषा हूँ जिसमे तुम, भाव-नदी का अमृत पीते
मै वह भाषा हूँ जिसमे, तुमने बचपन खेला और बढे
हूँ वह भाषा जिसमे तुमने यौवन ,प्रीत के पाठ पढ़े
'माँ ! मित्ती का ली मैने' तुतला कर मुझमे बोले
माँ भी मेरे शब्दों में बोली थी, 'जा! मुँह धोले'
जे जे करना सीखे थे, और बोले थे अल्ला अल्ला
मेरे शब्द खजाने से ही, खूब किया हल्ला गुल्ला
उर्द्दू मासी के संग भी, खूब सजाया कॉलेज मंच
रची शायरी प्रेमिका पे, और रचाए प्रेम -प्रपंच
आँसू मेरे शब्दों के और प्रथम प्रीत का प्रथम बिछोह
पत्नी और बच्चों के संग फिर, मेरे भाव के मीठे मोह
सब कुछ कैसे तोड़ दिया और सागर पार में जा झूले
मै तो तुमको भूल न पायी, कैसे तुम मुझको भूले
भावों की जननी मै, 'माँ' थी, मै थी रंग तिरंगे का
जन जन की आवाज़ भी थी , स्वर थी भूखे- नंगों का
फिर क्यों एक पराई सी मै, यों देहरी के बाहर खड़ी
इतने लालों की माई मै, क्यों इतनी असहाय पडी
-लोरी