www.hamarivani.com

मंगलवार, 26 जून 2012

मेरी शादी....




"बीबी! अब तो हो लो अपने घर की,
कब तक अम्मा की छाती पे मूंग दलोगी!"

ताई अम्मा का जाना पहचाना फिकरा, और हम भी क्या कम गिरते हैं!  " अरे काहे ना दलें! हमारे अब्बू ने और जो मंगा दिए हैं!" किराने के सामान से हमने भी उन्हें मूंग की थैली दिखाते हुए ज़ुबान लड़ाई, मम्मा ने सलाम फेरा, जानमाज़ से उठीं और बड़ी बड़ी आँखों से हमें घूरते हुए, मूंग की थैली झपट बावर्ची खाने में आ गयीं. 'अरे बिट्टो! तुम्हारी अक्ल तो सास ही ठीक करेगी!' ताई अम्मा बड़बडाई. लो जी! अब हमारी सास के पीछे पड़ गयीं, शुक्र मनाओ के बड़ी अम्मी हो, ग़ैर होती ना तो हम देखते अबी! हमने भी दिल ही दिल में उन्हें धमकाया .अरे! ज़ोर से धमकाते तो मम्मा हमारा तिक्का बोटी कर देतीं.

सोचने वाली बात है, मीना गयी, रीना गयी सबकी शादी हो ली, गरज ये कि मोहल्ले की हर लम्बी-मोटी, ऐरी-गैरी सब निपट गयीं, अल्ला मियाँ! ये तू हमसे ही क्यों सारे इम्तेहान लेता है! अरे हम ही नहीं पूरे शहर, घर, मोहल्ला, खानदान, और इसका एक एक फर्द ज़ोर लगा रहा है, बिन्दु जी महाजन, अनजान बाजी, बिन्गारे अंकल, नन्हे मामू, मुन्नी आपा, शिबली भाई, संसार और हमसफ़र मैरिज ब्यूरो, हिदुस्तान मेट्रीमोनी, और समाजी रिश्ते सबने अपने अपने लेवल पे पूरा ज़ोर मार दिया है, और कहीं लोग ज़ात बिरादरी का बैर रक्खें पर हमारे केस में तो भारत की लोकतांत्रिक एकता का नमूना ऐसा दीख पड़ता है कि शर्मा , मेहरा, मिश्रा अंकल, सतनाम चचा, जूरानी आंटी सबने अपनी पूरी पूरी कोशिश करली है.  हालत ये है  कि काम वाली बाई के साथ बर्तन जमवाने खड़े हो जाओ तो वो भी एक दो रिश्ते बता देती है, फिर भी कबख्त हमारा नसीबा, टस से मस नहीं होता. सेहरे के फूल खिलने की दुआएं देते नाना मियाँ, दादी अम्मी, और नाना अब्बू सब अल्लाह को प्यारे हो गए, पर वह हमारा नौशा! अल्लाह जाने सेहरे में कौनसे बेशर्म के फूल लगा कर आने वाला है जो खिल ही नहीं रहे.

अब देखिये ना इन लड़के वालों को! अरे इनका लड़का काला होगा तो हमें आटे की सफ़ेद बोरी कह कर रिजेक्ट कर देंगे, इनका लड़का गोरा हुआ तो हमें कोयले की खान कह दिया जायेगा. इनका लड़का कम पढ़ा लिखा होगा तो हमारे क्वालिफिकेशन सुन कर कहेंगे कि " अल्लाह ! क्या सारे कुनबे के हिस्से का इन्होने ही पढ़ डाला! और लड़का भोंदू हुआ तो हमें कहा जायेगा, "बड़ी तेज़ तर्रार है.", इनका लड़का मरगिल्ला होगा तो हमें कहेंगे "मुटापे का ये आलम है कि चार पांच लड़के लगेंगे उससे शादी को!"  और इनका लड़का मुट्टा निकला तो आपको रिजेक्ट करने की वजह देखिये, " अई गोईं! कां माशाल्ला हमारा खाता पीता शाहिद! और कां वो तख्ता लडकी!. उन्हें आँख उठा कर देख लो, तो कहें कि "अल्लाह! आजकल की लड़कियों की आँखों में शर्म ही नहीं " और ना देखो तो, " अई भेन! (अरी बहिना!) हमें लगे भेन्गी है".

अब्बू बेचारे! कल ही शादी के धंधे  में नए नए उतरे मुन्ने मियाँ  अब्बू से बाते कर रहे थे, " कूँ खाँ! क्या हुआ बेटी का!" तमाखू मलते मलते अब्बू की दुखती रग पर आहिस्ते से हाथ धरा मुन्ने मियाँ ने!
"अरे कहाँ अभी! " अब्बू ने किसी हारे हुए जुआरी की तरह आसमान की तरफ देखा. "आप बी ना सा'ब! अव्वल तो लडकी को इत्ता पढ़ाना नी, और पढ़ाओ तो लोगों को बताना नी! अरे हम भेज रए हैं दो एक !! आप उनसे पढाई का तो ज़िक्र ही मत करियेगा, बाकी हम देख लेंगे,  अरे साब ऐसे हीरे लखीने हैं कि ज़िंदगी भर आप मुन्ने मियाँ को याद करेंगे हाँ! एक बखत लडकी ज़रूर दिखा देइय्ये हमें!  अब्बू ने इशारा किया "वो देखो, जो खेत में नए ट्रेक्टर का ट्रायल ले रही है ना, वही है मेरी बेटी!"  और हम! धम्म से कूदे ट्रेक्टर रोक, तो मुन्ने मियाँ सहम कर दो क़दम पीछे हो लिए. सलाम चचा! हमने एक सलाम ठोंका, " हे हे! ख़ासी अच्छी है मियाँ बेटी तो! चचा मुन्ने हिनहिनाये, तुम पोडर वोडर नई लगातीं बिटिया! कोईं आये तो ज़रा लगा लिया करो." जी चचा मियाँ! हमने भी स्टोल से सर ढांक लजाने की एक्टिंग की. "कुछ याद है आपको? " " जी बहुत कुछ "  मुन्ने मियाँ के मुंह से निकला नहीं कि हमने लफ्ज़ उचक लिए, "कार हम चला लें, बस हम चला लें, ट्रेक्टर का तो आप नमूना देख ही चुके हैं,  माशाल्ला से खासे पढ़ भी लियें हैं"  " अरे मेरा मतलब है सीना पिरोना!"  अब चचा मुन्ने ने पैंतरे बदले. "आप फ़िक्र मत करिए फटा सिला, रफू रंगाई, हम सब में माहिर हैं!  हमने निहायत भोलेपन से जवाब दिया."  चचा मुन्ने अब खुश दिखे, "अल्लाह ने हमें फ़रिश्ता  बना के भेजा है आपकी  बेटी के लिए! " "आयीं! कहीं ये चचा मुन्ने ने ही तो मुझे अपने चौथे निकाह के लिए सिलेक्ट नहीं कर लिया! " मैंने घबरा कर आँखों ही आँखों में उन्हें तौला, "हम्म! एक ठंडी सांस ली मैंने" , बहरहाल चचा मुन्ने ने अगले ही दिन एनाबाद वालों के यहाँ से जीप भर के लड़केवाले भेज दिए, हमें खबर नहीं,  हम उनकी जीपों की चिल्लपों सुनकर सोंच रहे थे, अल्लाह खैर ! कहाँ डाका पड़ गया.

नाश्ते सजाये गए, घर की सुथराई भी हो गयी, दालान की बेलों से मधुमक्खियों के छत्ते हठाये गए, और मेहमान भी आ गए. जीपें सय्यदवाड़ी के परले सिरे खड़ी करवा दी गयीं, वाह! एक जीप पे हमारा दिल भी आ गया. सब लोग मेहमानों की खातिर में लगे थे और हम छत से जीप देख रहे थे, इत्ते में भाईजान टपक पड़े, पके आम की तरह, "तुम यहाँ क्या कर रही हो? "  बेमौसम के सवाल.
"अरे! क्या कर रही हो का क्या मतलब है, हमारे लड़केवाले, और हमीं नई देखें! वाह मियाँ! " " हम्म! देख लो, मगर ज़रा जल्ली कल्लेना" भाई ने जवाब में कुछ ऐसे कहा कि लगा कि मै बाथरूम के दरवाज़े के 'इस' तरफ खड़ी हूँ और भाई,  'उस' तरफ. मेरी लार जीप को देख बेसाख्ता टपक रही थी, कि अल्लाह ने एक नन्हे को नाजिल कर दिया, छोटू! मैंने धीमे से आवाज़ दी. "हमें बुला लही हो? " जवाब में नन्हे ने सवाल दागा. "हमाला नाम छुम्मन है" निहायत नवाबी अंदाज़ में उसने जवाब दिया. "छुम्मन! मेरी जान! ये जीप किसकी है." मै मुंडेर से पूरी लटक गयी.  "फ़य्याज़ भाई की! उनके लिए ही तो दुल्हन भाभी ढूंढ़ने आये हैं हम! " ":अच्छा! पुचु पुचु मेरा बच्चा! जाओ जाकर फ़य्याज़  भाई से चाबी लेकर आओ, कहना दुल्हन भाभी मंगा रही हैं." "नहीं देंगे! किछी को नहीं देते!" उसने अपनी गोल गोल आँखों को और गोल करते हुए कहा, "अरे तो मियां! उड़ा लाओ, घूमना है कि नहीं! " कहते हुए मैंने उप्पर से एक चोकलेट फेंकी . अल्लेवा! हमें भी ले चलोगी; उसने चोकलेट लपकी, " अबी लातें हैं."  जियो मेरे लाल! काम हो गया!! मै पिछले दरवाज़े से नीचे भागी, कहाँ जा रही हो, "तुम्हारी बात आयी है बन्नो!" ये ताई अम्मा ट्रेफिक पुलिस की तरह गलत जगह ,गलत वक्त ही टपकती हैं; "जजी! इस्तरी ख़राब हो गयी,खान आंटी के यहाँ से प्रेस लाऊं ना अब! क्या सोचेंगे वो लोग!" जाओ! मेरी बेटी! ज़बरदस्ती बालों में हाथ फेर दिया  ताई अम्मा ने! अरे सुन! लुकछुप की जाइयो! कोई देख ना ले. मैंने जवाब में एक मुस्कराहट उन पर फेंकी और पिछले में पार्क गाड़ियों के पास! ":छुम्मन मेला लाजा बेता!" मैंने उसे गोद में लेकर सालसा की पोज़ीशन बनायी, उसे गाडी में पटका और चाबी लगाते हुए उससे पूछा ! " ये नेक काम अंजाम कैसे दिया आपने छोटे मिया! " गोदी में लतक गए ओल धीले छे ले ली, हम ऐछ्यी कलते हैं" अर्ररे!! मैंने हैरत से उसे देखा और स्टार्ट कर के रिवर्स डाला. उह्ह! गाडी! धम्म से जाकर सय्यद वाड़ी के मज़बूत पिलर से टकराई, ओह्ह! उसकी आवाज़ से लग गया था की जीप की पिछली लाईट शहीद हो गयी है. डर के मारे मेरा कलेजा मुह को आने लगा, मैंने गाडी को इंसानियत से पहले वाली पोज़ीशन में पार्क किया और कहा, "उतरो छोटू! " "कूँ! तुमने तो कहा था छैल कलावोगी !, घुमाव ना अब!" उसका मुह पूरा चोकलेट में भर रहा था. "अरे! तुम्हारे उन कंजूस भाई ने पेट्रोल डलवाया  नहीं! क्या पानी से चलाऊँ गाडी! " मै भाई छे पूछूं!" उसने धमकाने वाले अंदाज़ में कहा, अरे! मैंने चोकलेट आगे की. " मंच!"  उसने बुरा मुह बनाया, " नई मै तो पूछूंगा"  मेरा दिल धडकने लगा, मैंने डेरीमिल्क का बड़ा सा पैकिट उसकी जानिब बढाया, आज सुबह ही पप्पा से वुसूला था, लड़ लड़ के. तुम तो बड़े रिश्वतखोर हो! मैंने रुआंसे होकर कहा. "काम भी तो जोखिम का था."

मैंने राहत की सांस ली. अब सीधा उप्पर जाकर मगरिब अदा की और मेरा फरमान आ गया. पाहिले चचा मुन्ने ने मुझे देखा और समझाइश दी, "बिटिया! नौकरी तो आपने की ही नहीं" क्यों जी! बड़ी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनीज़ में अच्छी वर्कर होने के झंडे गाड़ चुकी हूँ और आप!" मैंने गुस्से में मुन्ने मियाँ को घूरा, मगर पापा ममी का चेहरा देख हार मान ली. "ओके! और बताइये!" चचा ज़रा मुस्कुराए  अब, थोडा पास आये, और सुनो! दस जमा'अत पढी भी हैं, और हाँ! थोडा कम्पकपाना, लड़के के सामने थोडा ज्यादा. "

मैंने उन्हें देखा उन्होंने अपना अंगूठा मुझे दिखाया और आगे के दरवाजे से अन्दर आ गए. लो जी! आ गयी लडकी. मै बड़े से चादरनुमा फिरोजी दुपट्टे में लिपटी, आहिस्ते आहिस्ते नीची नज़रे किये  हाल में दाखिल हुई.  मेरे हाथों ने कम्पकपाना चालू कर दिया था. "ओह्ह! कित्ती घबरा रही है बेचारी!" किसी औरत की आवाज़ थी. अब तो हंसी रोकने के चक्कर में हाथ और ज़ोर ज़ोर से कांपने लगे. लड़के के सामने जब पानी के ग्लास की ट्रे आगे की तो हाथ इतनी ज़ोर से कांपे कि पानी उस बेचारे पे. ओह्ह! साथ आयी एक मोहतरमा उठीं, "अल्लाह! बेटी बैठ जाओ!  कितनी शर्माती है, आजकल की लड़कियों में कहाँ ऐसी शर्मो हया!  हम कहें, हम केयी साथ हुआ था ऐसा, इनके बाउजी देखने आये थे ना हमें." बड़ी बी खामख्वाह जज़्बाती हो गयीं थी.  "हें हें! ज्यादा बाहर नहीं निकली ना," चचा मुन्ने भी हिनहिनाये. मै बैठ गयी.

लड़के ने टावेल से खुद को सुखाया. उसके कुरते पाजामे का कलफ उसके मूड की तरह ही गारत हो गया था. "वैसे सा'हब ! आपके यहाँ काम क्या होता है?" अब्बू ने लड़के के वालिद से पूछा. "अब आप से क्या छुपा है सर! अपना दो नंबर का काम है लकड़ी का. अच्छा पैसा है"  वो संभले. ऐसी बात नहीं है, हम अल्लाह वाले लोग हैं , ज़कात दे देते हैं, माशाल्ला से दो हज हो गए हैं. वे चचा मुन्ने से भी ज्यादा इर्रीटेट  करने वाले अंदाज़ में हिनहिनाये, गोयां अल्लाहताला को खरीद लिया हो. "पुलीस वुलिस का डर..?" मेरे सीधे सादे मास्टर अब्बू ने भोलेपन से पूछा, अरे जनाब! काम बड़े जोखिम का  है, रिश्वत है ना! लाखों खिलाने पड़ते हैं, गोदी में लटक गए, धीरे से डाल दी हम ऐसई करते हैं. ओह्ह! मेरे कानो में छुम्मन के अलफ़ाज़ गूंजने लगे, "गोदी में लतक गए, धीले छे......" लिफाफा देख मैंने मज़मून भांप लिया था. तभी मेरे कानो ने सुना, "भाई! ये लियए चाबी, आप भूल गए थे गाली में, हमने उथा ली. " छुम्मन फ़य्याज़ को चाबी थमा रहा था. अह्हा ! मेरा समझदार बेटा! उसके दादा ने उसे चूम लिया और उसकी जेब में एक ५०० का नोट फंसा दिया. मेरी और छुम्मन की नज़रें मिली और छुम्मन  ने मुस्कुरा कर एक आँख दबा दी. "अल्लाह! मेरा दिल ज़ोर से धडका.  ऐ परवरदिगार! मेरे ना हुए बच्चों को इस दादा से बचा लीजियो तुझे मरियम अलस्सलाम का वास्ता!!! ( अगर हम वो ना कर पाए जो तू चाहता है तो हम वह भी ना करें जो तू नहीं चाहता. मेरे ज़हन में अम्मा कि दुआ गूँज उठी)

अब्बू ने मेरी तरफ देखा, मैंने उनकी तरफ. "जी बात यह है कि इसने कॉलेज में पढ़ा है, थोडा ज्यादा, आगे नौकरी करना चाहती है." नई साब बिलकुल नहीं, होई नई सकता, खैर अल्लाह ने कहीं तो लिखा होगा, फय्याज का जोड़ा"  उसके अब्बू मायूसी से उठे. चचा मुन्ने ने मुझे मायूसी से देखा. मै और अब्बू मुतमईन थे. सब लोग मेहमानों को दरवाज़े तक छोड़ कर आये . चचा मुन्ने मायूस लग रहे थे. "क्या है चचा! मैंने उनके मुह में चाकलेट फंसाते हुए कहा घबराइये नहीं, अभी तो बैग में और भी हीरे लखीने होंगे ना! आखिर अल्लाह मिया ने आपको मेरे लिए फ़रिश्ता  बना कर जो भेजा है."  





(इमेज के लिए गूगल को, और पोस्ट चलाने के लिए अज़ीज़  दोस्त डॉक्टर साहब का तहे दिल से शुक्रिया, वर्ना मेरे बीमार होने की वजह से इस पोस्ट को आवाज़ नहीं मिल पाती.)

31 टिप्‍पणियां:

इन्दु पुरी ने कहा…

pahle btao lori ho ya sehba???? dusht! main lori ko yaad kiya krti thi. use kbhi bhool n pai aur tumko pahchan n pai ha ha ha apne anubhv likhe hain? bahut khoob likhe hain. ek bargi me poora pdh gai.kuchh alg baat to hai tum me. likhne ka apna andaz bhasha me sadgi rwangi.....lmbi race ka ghoda ho. jio. jeeto.

Archana Chaoji ने कहा…

बहुत खूब लोरी जी,एक सामान्य समस्या का जिक्र अपने ही अन्दाज़ में किया है आपने ...लड़कियों के लिए आम समस्या है, ये लेकिन आपके अब्बू !वाह.....और मुन्ने मियाँ ..हा हा हा........

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

खूब लिखा है .....ऐसों से तो बचना ही भला .... ज़रूर होंगें अभी कई और हीरे लखीने :)

anjule shyam ने कहा…

जबरदस्त पोस्ट...
सच में हँसते हँसते हमरा तो बुरा हाल है...जी

Astrologer Sidharth ने कहा…

वाह! एक जीप पे हमारा दिल भी आ गया. सब लोग मेहमानों की खातिर में लगे थे और हम छत से जीप देख रहे थे


ये तो बात बनी नहीं, वरना आप तो कहीं जीप के पीछे ही रवाना न हो जातीं... :)

उम्मतें ने कहा…

मूंग दाल वाली कहावत पे तो कोई कमेन्ट ना किया जायेगा क्योंकि इस किस्से में वो आपकी ताई अम्मा का कापी राईट हुआ :)

पोस्ट के दूसरे पैराग्राफ में शादी करवाने के लिए हलाकान हुए लोगों का इतना तगड़ा नेटवर्क बता डाला है कि फ़िक्र हो चली थी कि ये किसी एक इंसान की शादी के लिए कोशिशें हैं कि किसी दूसरे मुल्क पे चढ़ाई करने का मामला है :)

तम्बाखू खोर मुन्ने मियां को काफी इज्ज़त बख्श दी आपने , मुझे लगा कि हिनहिनाने से बेहतर रेंके होते ! खुद के तीन तीन निकाह और उस पर शादी के लायक लड़कियों के प्रोफाइल्स कब के ज़माने से सीने पिरोने पे अटका रखे हैं चचा जान ने :)

एक नम्बर की लड़की देखने आये लोग , दो नम्बर की लकड़ी बेचने वाले निकले :)

खैर आपकी अम्मी की दुआयें , छुम्मन की शक्ल में अपना काम कर गईं वर्ना ये पोस्ट लिखने के बजाये इस वक़्त आप फैय्याज भाई को पुलिस से बचाने के लिए गल्ले में से पैसे निकाल कर दे रहीं होतीं :)

वैसे रिश्वत देने में आपका भी कोई मुकाबिला नहीं , चाकलेट क्या रिश्वत ना हुई :)


आप से पहले भी कह चुका हूं कि गज़ब का लिख रहीं है आजकल ! लगे हाथ इंदु आंटी को भी जबाब दे दीजियेगा , दुष्टों की मुहब्बत में उनके भी हाथ सुरसुराते रहते हैं :)

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत खूब, पढ़कर आनन्द आ गया..

zindgi ने कहा…

ओह्ह! ये एपीसोड अभी खत्म नही हुआ!!
आनंदी की ज़िन्दगी में भी अब तो कलेक्टर साब आ गए हैं, और मैडम अभी तक अकेली हैं!
रब करे तुझको भी प्यार हो जाये.
इससे दो फायदे होंगे, बन्दा तुम्हारे लेवल का होगा और तुम्हारी नोटंकी नाटकों से वाकिफ भी, और दुसरा, अम्मी अब्बू की टेंशन भी खत्म.
वैसे एक सही सलाह, अब कर लो यार किसी से भी.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

हमारा नौशा! अल्लाह जाने सेहरे में कौनसे बेशर्म के फूल लगा कर आने वाला है जो खिल ही नहीं रहे.
.....कमाल की शैली। आनंद आ गया। बहुत बधाई।

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

फ़य्याज़ को ना नसीब हुई लोरी की सवारी!
इस दिल को चाक कर गयीं तेरी बातें प्यारी-प्यारी!

खूबसूरत!

तेरी परवाज़ लगे है ऊंची बहुत, नीचा पर लगे है मुझे गगन!
पर परवाह ना कर, पर फैला, उड़ती रह होके यूँही मगन!

और भी कुछ नहीं हुआ तो चचा मुन्ने के चौथे निकाह का सामान तो हो ही जाएगा! हा हा हा.....

मज़ाक-मज़ाक में कुछ बेहद गंभीर बातें..... पढना सार्थक हुआ!

ढ़पोरशंख

lori ने कहा…

नाम में क्या रक्खा है,
"अजी! शांति के पति नाम बुद्धूराम था!!
नाम बड़ा या काम!"
वैसे एक बात तो तय है कि दोनों ही आपसे प्यार करती हैं!!
शुक्रिया! साथ बना रहे .

lori ने कहा…

शुक्रिया! साथ बना रहे .

lori ने कहा…

शुक्रिया! डॉक्टर साहिबा! :)

lori ने कहा…

:)

lori ने कहा…

सही कह रहें हैं सिद्दार्थ भाई जान!
जीप की खातिर तो कुछ भी किया जा सकता है.
:)

lori ने कहा…

सब आपकी दुआओं का नतीजा है, अल्लाह करे आपकी दुआएं हमें मिलती रहें,
लगती रहें!! साथ बना रहे! :)

lori ने कहा…

शुक्रिया! साथ बना रहे

lori ने कहा…

अल्लाह! आशीष भाई!!'
आप आये, और बिलकुल आप ही के अंदाज़ में आये!
कित्ता अच्छा लगा, क्या बताऊँ!!!
खैर आपके 'मंगली ट्यूज़ -डे ' से ही प्रेरणा ली है.
शुक्रिया.

lori ने कहा…

देवेन्द्र जी का शुक्रिया!!! :)

lori ने कहा…

भाई!आप भूल गए
भोपाल में दरख्तों के नीचे बैठ
आप ही ने समझाया था,
दो काम मत करना :
१) दिल ना हो जो काम
२) दिल ना मिले तो शादी.

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

इस लायक नहीं मैं के किसी को कुछ दे पाऊँ, प्रेरणा तो बहुत बड़ी चीज़ है.

अपने अंदाज़ को नज़रंदाज़ ना करते हुए 'भाई' लफ्ज़ के इस्तेमाल पे कड़ा ऐतराज़ दर्ज करना चाहता हूँ.
इसके आगे ना मेरा कोई इरादा है, ना ही समझा जाए)

आपका काफ़िर मुरीद,
ढ़पोरशंख

lori ने कहा…

"इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ खुदा!
लड़तें हैं और हाथ में तलवार भी नहीं"
आपका ऐतराज़ सर आँखों पर, आईंदा भाई न कहने का वादा!
और अब तक भाई कह देने पर माफी!!!! :)
साथ बना रहे!

Satish Saxena ने कहा…

वाकई अच्छा लिखती हो लोरी ...
रख्शंदा का लेखन याद आ गया !
शुभकामनायें !

lori ने कहा…

जी शुक्रिया!
मगर ये रख्शिन्दा साहिबा कौन हैं!

lori ने कहा…

जी शुक्रिया!
मगर ये रख्शिन्दा साहिबा कौन हैं!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

इसे सादगी का ना नाम दे,
ये है मेरी दीवानी आरज़ू!
जब होना है मुझको फ़ना,
शमशीर का मैं क्या करूं?

ढ़पोरशंख

lori ने कहा…

आरज़ू में आंच भर
हौंसले शमशीर कर
इश्क हो तो मौत से
और ज़ीस्त हो तलवार पर
-वल्लाह जवाब तुम्हारा नहीं :)
http://meourmeriaavaaragee.blogspot.in/

उम्मतें ने कहा…

ये रक्षंदा साहिबा कौन हैं ? सतीश भाई हम भी जानना चाहेंगे :)

rashmi ravija ने कहा…

कमला का लिखा है लोरी...
माँ -बाप को फ़िक्र हो या ना हो..सारी दुनिया हकलान हुई जाती है...सबको गप्पें करने और समय कटाने का एक जरिया मिल जाता है.

rashmi ravija ने कहा…

फिर से स्पैम में गयी हमारी टिप्पणी..:(

lori ने कहा…

:) sahi hai