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शुक्रवार, 22 जून 2012

इसीलिये मम्मी ने मेरी तुम्हे चाय पे बुलाया है.......


http://4.bp.blogspot.com/_IIUXg4PXyqk/S6808rKQMDI/AAAAAAAAAGk/UyLiaioU8_M/s1600/coffee%2520love.jpg 


 जिसके बगैर आगाज़े सुबह ना हो, जिसके बगैर दिन ना ढले, जिसके बगैर तन्हाइयां बुझी बुझी लगें, और जो नज़दीक हो तो अपना आप मुकम्मल लगे. जी हाँ! उसी का नाम  है चाय. वही जिसके बगैर हम ना रिश्तों की कल्पना कर पायें, ना गपियाने की. ना लम्बी दोपहर  के काटने का कोई बहाना हो ना स्टडी से थक आये ज़हन का कोई ठिकाना हो. सच जिसके बगैर कायनात का हर रंग फीका हो, ज़िन्दगी रुकी रुकी सी लगे ,वही तो है चाय. 

 माँ  को चाय बिलकुल पसंद नहीं, पापा सुबह चाय की जगह छांछ पीते हैं, अक्सर जब हम भाई बहिन चाय पीतें हैं, दोनों नाक भौंह सिकोड़ते हुए कहते हैं, "नशीले! हमारे बच्चे हैं यह!"  "पता नहीं, अस्पताल में बदल गए शायद!" दोनों ही मुस्कुराते हुए इस नतीजे पर पहुँचते हैं. बाजी को किसी के हाथ की नहीं जमती, सो बड़े मज़े हैं, वह जल्दी उठ गयी तो सुबह से शाम तक चाय की छुट्टी, कोई मुझसे नहीं कहेगा, "गुडिया! जाओ चाय बनालो, मंझली और चाय के इश्क के किस्से बड़े मशहूर हैं, जब बड़े मामू ने अपने बेटे के लिए उसका प्रपोज़ल माँगा तो उस वक्त वह चाय पी रही थी, वक़ार भाई ने जब बड़ी अदाओं से उन्हें बताया कि 'फुप्पी जान से अब्बू उन्हें वकार  भाई के लिए मांग रहे हैं'  तो जवाब में पूरा ग्लास वह भी चाय का, उन्होंने वकार भाई  पे देमारा. शादी तो खैर बहिना की गैरों में हुई पर, वक़ार भाई के टखने पर उस ग्लास का निशान जूं का त्यूं है. बड़े भैया को कोफी ज्यादा पसंद है, पर रोज़े अब्र और शब् ए माहताब में  दिल चाय पर ही आता है, खुद बनाते भी हैं और सब भाई बहिनों को पिलाते भी हैं. छोटा भैया बचपन में ही दूध को तलाक दे चुका था, और उसके साथ ही चाय एक महबूबा सी लग गयी थी, अक्सर स्कूल से आकर चाय मांगता तो माँ कहती, 'चाय नहीं मिलेगी, खाना खाओ पहिले', जवाब में वह मुस्कुराते हुए माँ के गले में बाहें डाल कहता, "चाय बिना चैन कहाँ रे!"  माँ पट भी जाती थी, अमूमन अम्माएं ऐसी ही होती हैं.

मेरी कोई फ्रेंड आती जनाब चाय लेकर हाज़िर! सीमा स्मिता से लगा कर स्मृती दी या कीर्ती सबको अपने हाथो चाय बना कर दी है इसने, बदले में कम भी कहाँ पड़ा!  इसके दोस्त कितने नालायक थे, ऑर्डर से, लाड से ,मान से या मनव्वल से मुझसे चाय बनवा ही लेते थे, प्रदीप भैया, गोपाल भैया, शैलेष भैया , गौरव भैया, सचिन भैया, वैभव भैया, फरीद भैया, विक्टर, प्रवीन, छोटू सिंधी और भैयाओं की नाख्त्म होने वाले फहरिस्त और शाम की चाय के धमाल. 

कोई लडकी सेट करनी है, दिलशाद का घर, और चाय का टाइम, किसी को पीटने का प्रोग्राम बनाना है, शाम पांच बजे दिलशाद का घर और चाय का टाइम, किसी की गर्ल फ्रेंड के बिछड़ने का मातम शाम को चाय के वक़्त दिलशाद के घर. अब तो सब ज़िन्दगी की दौड़ धूप में उलझे हैं, सबके बीबी बच्चे हैं नाखतम होने वाले काम हैं, पर साल में एकबार ज़रूर मिलते हैं सब वही दिलशाद का घर चाय का टाइम.
दिलशाद (छोटा भाई) और चाय अब एक दूसरे के पर्याय थे, प्रदीप भैया की मम्मी को पता था, दिलशाद आने वाला है, चाय ज़रूर बनेगी, अच्छा गुडिया भी आ रही है, चाय बढ़ा लो, और बारिश के मौसम में घर का लैंड लाइन खनखना उठता, "गुडिया! हम सब आ रहे हैं, जोशी के पकौड़े लेकर, चाय बना ले बेटू! " शाम को अक्सर, "ए भैया! कल मैंने बनायी थी, आज तेरा नंबर है, " "ओये! आज मेरा नहीं, भैया का टर्न है" चल बढ़ ले यहाँ से, मै वे नहीं बनाने की! "  इतने में पिम्पले क्लास से लौट कर घर में दाखिल होती कीर्ती /"लाइए भैया! मै बना दूं," करके खुद ही चाय बना देती थी.  

शाम की चाय के साथ भेल, मेरी एक्साम के टाइम पर गौरव भैया ही बनाते थे, रात को अक्सर रूम मै नाना मियाँ  के साथ शेयर  करती थी, अक्सर रात के दो या तीन बजे वे उठते और कहते, "मेरी  बच्ची ! पढ़ रही ही, आ तेरे लिए चा बना दूं!" मै जवाब में मुस्कुराते हुए उठती नाना मियाँ को वाशरूम ले जाती, पानी पिलाती, वुजू करवाती और तहज्जुद गुज़ार नाना मियाँ के मुसल्ले पर एक प्याली चाय रख जाती, गोयां यह नाना मियाँ का चाय पीने के लिए कोई इशारा हो. एक दिन मैंने माँ  से पूछा " मामा! नाना मिया ऐसा क्यों करते हैं, जवाब में माँ की ऑंखें गीली हो गयी, कहने लगीं, "बेटे वह दौर शदीद ग़रीबी का था, घर में गैस नहीं था, मै बीएससी कर रही थी, और मुझे स्टोव जलाना नही आता था, अब्बू जी चार बजे उठ कर मेरे लिए चाय बनाते थे, आज मै जो कुछ हूँ सिर्फ उनकी कुर्बानी और मोहब्बत की वजह से वर्ना, छः बेटियों के बाप ने अगर छटी बेटी को नहीं पढाया होता तो!" जवाब में मेरी भी आँखे भीग गयी. मै जब तक नाना मिया के साथ रही, अपने हाथों से उन्हें चाय पिलाती रही, अम्मा का कर्ज़ समझ कर और बदले में नाना मिया ने मुझे हमेशा एक दुआ दी, "अल्लाह ! मेरे इस बच्चे को सूरज सा मुनव्वर कर, और चाँद सा नूरानी कर दे." नाना मिया की दी हुई दुआ घर में सबको रट गयी थी, जब भी मै उन्हें चाय की प्याली से तश्तरी में चाय ढाल कर देती, मेरा भाई चुहल करता, "अल्लाह इस लडकी को चुड़ैल सा चीपड़ा, और  सिंगी गाय सा भारी......" फिर तो हमारी वह फ्री स्टाईल  होती कि बस ..!!!
  
चांदनी रातों में चाय का कप थामे हम तीनो भाई बहिन सियारों की तरह छत पर बैठ चाँद तांकते, नयी ग़ज़लों पर तब्सिरे होते, जगजीत साहब, गुलाम अली साहब, महदी  हसन साहब या अहमद हुसैन मोम्मद हुसैन साहब की आवाज़ का जादू धीमे धीमे चलता रहता, बारिश या सर्दी की कोहरे वाली कितनी सुबह हैं जब ज़फर भाई  को साथ ले, अपनी अपनी गाड़ियां उठा, थर्मस में चाय डाल हम लॉन्ग राइड पर निकल जाते थे. चाय गोया वह बुढिया थी, जिसने हमें रोते हँसते, गाते झूमते हर रंग में देखा था . कितनी झील सुबहें, नील शामें, हम और चाय बस!!!! 

और अब! होने वाले मियां ने फरमान भेजा है, "आई हैट  टी." ऐसे कैसे हो सकता है!!!
क्क्क्य! मुझे मेरा लिखा एक शेर याद आ गया:
"तुझ से बिछड़ कर डूबती, चाय के प्यालों में शाम
हमने यूं गम को भुला कर मुस्कुराया देर तक..."
 
चाय के लिए मेरी मोहब्बत जोश मारने लगी, मुझे कुछ करना होगा.
 
  घर  में कोई नहीं था, हमने भी  मौक़ा देख उन्हें चाय पे  बुलाया, कान के नीचे कट्टा अड़ाया और खुले लफ़्ज़ों में समझा दिया है,  "बचपन से क्या पिया सुबह! अरे चाय ही पी ना! अरे २ दिन से कोफी क्या मिली मियाँ अँगरेज़ हो गए!!! आज चाय को कह रहे हो कल हमें कहोगे, "आई हैट यू"  मिया! हम तो चाय पियेंगे वक्त बेवक्त पियेंगे, हमसे शादी करनी हो तो चाय से मोहब्बत करनी होगी, वरना, टीमटाम उठाओ, हमारे जैसी बीबी का मियाँ होने के लिए बड़ा जिगरा चाहिए हाँ! अभी तो बेचारे उठ कर गए ही हैं, बड़े रोमांटिक मूड से आये थे, और बड़े बुझे बुझे जा रहे हैं. हम मूड ठीक करने के लिए चाय बनाने जा रहे हैं, उसके बाद सोचेंगे इनका क्या करना है....     


 



 

12 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चाय के ऊपर तो घरों में झगड़े तक की नौबत आ जाती है..

उम्मतें ने कहा…

ये क्या किया आपने ? आज वो जनाब जिस अंदाज़ में बुझे बुझे से वापस गये हैं , घर से बाहर कोई चाय गुमटी वाला उन्हें देख कर कह उट्ठेगा...

नहीं कभी पी चाय
तभी तो मुख मलीन
लघु काय तुम्हारी :)

अब उसे क्या पता कि 'साहब' शादी से एन पहले ही धड़का / घुड़का दिये गये हैं वो भी सुबह शाम एक कप चाय के वास्ते :)


[ बहुत खूबसूरत तरीके से दौड़ रही है आजकल कलम आपकी ! मतलब 'कीबोर्ड' आपका ]

उम्मतें ने कहा…

ये क्या किया आपने ? आज वो जनाब जिस अंदाज़ में बुझे बुझे से वापस गये हैं , घर से बाहर कोई चाय गुमटी वाला उन्हें देख कर कह उट्ठेगा...

नहीं कभी पी चाय
तभी तो मुख मलीन
लघु काय तुम्हारी :)

अब उसे क्या पता कि 'साहब' शादी से एन पहले ही धड़का / घुड़का दिये गये हैं वो भी सुबह शाम एक कप चाय के वास्ते :)


[ बहुत खूबसूरत तरीके से दौड़ रही है आजकल कलम आपकी ! मतलब 'कीबोर्ड' आपका ]

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

रोचक प्रवाहमयी लेखन .... ऐसा भी हो ही जाता है :)

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 24/06/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

इस पोस्ट को पढ़ रहा था तो हाथों में चाय की प्याली आ गई। मजा आ गया।:)
लेख का प्रवाह सुंदर है। इसे पढ़कर तो यही दुआ याद आती है...
नाना मिया ने मुझे हमेशा एक दुआ दी, "अल्लाह ! मेरे इस बच्चे को सूरज सा मुनव्वर कर, और चाँद सा नूरानी कर दे."
...आमीन।

lori ने कहा…

आदरणीय अंकल अली!
प्यार भरा आदाब!! ऐसी कौन सी गुस्ताखी हो गयी जो आप मेरी नयी पोस्ट को टिपियाये बगैर ही आ गए!
कुछ हो गया हो तो अपने बेटी समझ कर माफ़ कर दीजिये क्योंकि आप के कमेंट्स और दुआओं ने ही तो कलम को रफ्तार दी है,
-लोरी.

lori ने कहा…

आदरणीय अंकल अली!
प्यार भरा आदाब!! ऐसी कौन सी गुस्ताखी हो गयी जो आप मेरी नयी पोस्ट को टिपियाये बगैर ही आ गए!
कुछ हो गया हो तो अपने बेटी समझ कर माफ़ कर दीजिये क्योंकि आप के कमेंट्स और दुआओं ने ही तो कलम को रफ्तार दी है,
-लोरी.

उम्मतें ने कहा…

तौबा , आपसे बेवज़ह नाराज़गी क्यों होगी भला , उस वक़्त ज़रा ज़ल्दी में था तो हाजिरी दर्ज करके निकल लिया ! सोचा था वापस आके फुरसत से लिखूंगा !

अरे भाई +१ करके जाने का मतलब है कि आपकी पोस्ट पढ़ ली और पसंद आई है ! टिप्पणी वापस आकर करने का ख्याल था !

देवेन्द्र पाण्डेय जी के यहां तो अक्सर ऐसा ही करता हूं पर वो कभी माफी नहीं मांगते मुझसे :)

उम्मतें ने कहा…

तौबा , आपसे बेवज़ह नाराज़गी क्यों होगी भला , उस वक़्त ज़रा ज़ल्दी में था तो हाजिरी दर्ज करके निकल लिया ! सोचा था वापस आके फुरसत से लिखूंगा !

अरे भाई +१ करके जाने का मतलब है कि आपकी पोस्ट पढ़ ली और पसंद आई है ! टिप्पणी वापस आकर करने का ख्याल था !

देवेन्द्र पाण्डेय जी के यहां तो अक्सर ऐसा ही करता हूं पर वो कभी माफी नहीं मांगते मुझसे :)

Astrologer Sidharth ने कहा…

वाह। चाय।


आपके लेखों में एक लय है... बस पढ़ते चले जाते हैं...