"सुन! मै शादी कर रहा हूँ, तू आयेगी ना!" सुबह सुबह मोबाइल खनखनाया और यासिर कि जानी पहचानी आवाज़ ने समाअतों की फिजा में रंग घोले.
यासिर से मुलाक़ात के पहले पहले दिन मेरे ज़हन में घूमने लगे, वेरोनिका इंटर
प्राईज़ेस के भोपाल ऑफिस की तरफ से मै, हैदराबाद ऑफिस की तरफ से यासिर
और चैन्नई ऑफिस की तरफ से सालई कोलामणी. "थर्ड ए.सी. का टिकट भेज कंपनी समझ
रही है कि अहसान किया." वह फोन पर किसी से बात कर भुनभुना रहा था, 'आईं!
हम भोपाल वालों के साथ तो और भी सौतेलापन किया गया है,स्लीपर में
ही....मैंने तुरंत भाई का नंबर डायल किया. "हां! वापसी की फ्लाईट बुक है
यार, परीशान मत हो !" मेरे बिना पूछे उसने बगैर औपचारिकता के जवाब दिया.
मीटिंग ख़त्म हुई, मै महीने भर का एजेंडा हाथ मै थामे, कलाई घड़ी को घूरने
लगी, ६ बजे की फ्लाईट है, और अभी ४: ३० हुए है, अभी से अरोड्र्म जाकर क्या
करूंगी, क्यों न लाजपत मार्केट तक होकर आया जाये, एरोज़ इंटर नेशनल होटल
की सीडियां उतरते उतरते मै सोच रही थी. गूगल मैप्स की मदद से रास्ता तलाशते
तलाशते जब लाजपत मार्केट आयी तो रोडसाइड पर एक शॉप में एक कैप्री पर मेरा
दिल आ गया. मै उसकी मोहब्बत में बावली दुकान में घुसी कि अन्दर दुकानदार से
भावताव करते यासिर पर निगाह गयी, वह झेंपा, झिझका, और मुस्कुराता हुआ करीब
आया. "मुझे रोडसाइड शोपिंग का मेनिया है" , मैंने उसका बड़ा हुआ हाथ थामा,
"मी टू" मै मुस्कुराई. और कैप्री उठा पेमेंट करने लगी. हम साथ साथ दुकान
से बाहर आये, इधर उधर टहले, उसकी ट्रेन शाम आठ बजे की थी. हम बेवजह गपिया
रहे थे. इस उस के भाव ताव कर छोटे मोटे दुकानदारों को तंग कर रहे थे,
हैदराबाद और भोपाल की बातें कर वक़्तगुजारी का लुत्फ़ उठा रहे थे. अब भूक
लगने लगी थी, उसने एक रोडसाइड शॉप पर कुछ मोमोज ऑर्डर किये और बेंच पर बैठ
पास खड़े सॉक्स वाले से भाव ताव करने लगा. मै मुस्कुरा कर पास खड़े मटका
कुल्फी वाले से दो कुल्फियां ले आयी, और अब हम दोनों साथ मिल कर उसे तंग
करने लगे, उसने कुल्फी वाले को पेमेंट किया, हमने साथ में मोमोज खाए और अब
चलने की वेला.
मैंने रस्मी बातें कर उससे विदा लेते वक्त एक पैकेट उसकी तरफ बढाया और
एरोड्रम के लिए एक रिक्शा पकड़ा. रास्ते भर मै यासिर के बारे में सोंच रही
थी, इतना हाई फाई मगर जरा भी क्लास कॉन्शियस नहीं, स्टेटस कॉन्शियस नही, अभी
इंदौर भोपाल के लड़के होते न तो....सच प्रोफेशनल माहौल का बड़ा फर्क पड़ता
है.
मै सोंचों में गुम थी कि एक मैसेज " विल आलवेज़ मिस दिस सिल्वर डे
-थैंक्स, यासिर." मै मुस्कुरा दी. उसके बाद हर मीटिंग के बाद दोस्ती बढ़ती
ही गयी और कब मैंने यासिर की बड़ी बहिन का दर्जा पा लिया मुझे अहसास ही
नहीं हुआ. हम अक्सर ६ महीनों में एक दिन पूरा साथ बिताते, जिसमे सिर्फ और
सिर्फ बातें. खलील जिब्रान की कहानियां,, ओस्कर वाइल्ड के नगमे और पता नहीं
क्या क्या!
दिन भर यासिर के लिए सोंचते सोंचते गुजरा, और शाम को वह
आया तो बुझा बुझा सा था, सोफे के नीचे बिछे कालीन पर तकिये से सर टिकाये
निढाल हो गया यासिर. मैंने पानी पिलाया, और कुछ देर उसे कमरे में अकेला
छोड़ किचन में आ गयी. मगरिब पढी, दुआ में हाथ उठाये और यासिर पास आकर बैठ
गया, " जानती है, उसके अब्बू केंसर के पेशेंट हैं, मेरे अब्बू हार्ट पेशेंट
दोनों नहीं चाहते हम शादी करें, अम्मा सारी उम्र न बख्शने की धमकी दे रहीं
हैं, मै अगर बगावत कर भी लूं, हम भाग भी जाएँ और मान लो उसके वालिद नहीं
रहे तोउसके तीन छोटे भाई बहिनों का क्या होगा, उसके अब्बू की आख़िरी स्टेज
है, और मेरे अब्बू की ८०% आर्टरीज ब्लोक हैं , मुझे भी तो गुडिया की शादी
करनी है. और फिर तू एक दिन नहीं बोली थी, मियाँ बीबी के रिश्ते में सब कुछ
होना चाहिए, सिवा मोहब्बत के, बड़ा प्रेक्टिकली जीना होता है यह रिश्ता!!!
खुश रहना हो तो कभी उससे शादी मत करना जिससे बहुत मोहब्बत हो." हमने साथ
बैठ के तय किया हमारा शादी न करना ही बेहतर है, हमने उस दिन साथ साथ पहली
बार ओपेरा देखा, साथ घूमे, साथ साथ रोये और..... कल उसकी भी शादी है." वह आदत के अनुसार एक सांस में सब बोल गया, उसकी आँखें पनिया रही थी और वह दुखी था, "यासिर! मेरा बच्चा!" मैंने आंसू पोछे और उसका सर अपने गोदी में रख लिया.
"यासिर!" - खाना लगाते लगाते मैंने पूछा
3 टिप्पणियां:
देखिये , टूथ पेस्ट के साथ फोटो खिंचवाने का एक आम सा उसूल ये है कि मुस्कराहट कनपटियों तक फैल जानी चाहिये वर्ना लोग कहेंगे कि यासिर की तीसरी च्वाइस से आप भी खुश नहीं हैं !
पहली शीरीं साहिबा , जिन्हें यासिर साहब ने खुद से झटका दिया , दूसरी अज़रा निशात साहिबा जिन्हें 'अनहुए' मियां बीबी के वालदैन ने बीमारी के तकाजे से निपटा दिया और अब तीसरी मोहतरमा जो भी हों , उनकी आमद पे आप की मुस्कराहट भी परेशानकुन लगती है :)
खैर...शीरीं और अज़रा निशात साहिबा के लिए अफ़सोस और दुआयें !
दोनों वालदैन की बेहतर सेहत के लिए दुआयें !
यासिर साहब के लिए क्या कहूं ? उन्होंने कुछ किया , कुछ पाया , ये उनका मुकद्दर !
अच्छे पापा तो सभी होते हैं पर अच्छा दिखना ज़रा मुश्किल काम हुआ करता है ! यासिर साहब , मुस्तकबिल में अच्छे पापा हों और ये दिख भी जाये , बस यही दुआ है !
और हां दो बात कहना तो भूल ही गया ...
(१)
उस चाकू का क्या हुआ जो आपने शीरीं के मसले में यासिर के लिए तैयार किया था :)
(२)
पप्पा बनने की बात पे यासिर साहब का रोते रोते बेसाख्ता मुस्कराना हमें जमा नहीं , ये सारे मर्द ? जैसा कि आप ने पोस्ट में कहा :)
भला सच्ची मुच्ची में दुखी कोई इंसान इस तरह से ज़ज्बाती स्विच ओवर कर सकता है क्या :)
:) pyar ka dukh sachhi muchhi ka aha hota!
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