वही सावन, वही राखी ,वही झूले, वही मेले
मगर एक हम नहीं है बस, खलिश भी है तो इतनी सी
वही सखियों का झुरमुट है ,वही आँगन ओ पनघट हैं
मगर एक हम नहीं है बस, खलिश भी है तो इतनी सी
कंहाँ बाबुल को फुर्सत है, जो भेंजें भाई को हम तक
कंहाँ हम पास ही में हैं! जो आयें बस यों हिचकी पर
भुआ भी आ गयी हैं और घर में तीन बहिने हैं,
मगर एक हम नहीं है बस, खलिश भी है तो इतनी सी
हमेशा की तरह इस बार भी छोटू घर सजाएगी
मंझली तो किचन में ही अपने रंग जमाएगी
गुड्डी कूदती आँगन में भैय्या को खीजायेगी
ऐसे खुशनुमा घर में हमारी याद आयेगी ?
वही गुडियें ओ चिड़ियें हैं, वही पीपल ओ बुलबुल है
मगर एक हम नहीं है बस, खलिश भी है तो इतनी सी
क्यों बाबुल तुमने ब्याहा और हमें परदेस को बाँधा
तुम्हारे दिल के टुकड़े को किसी के देस को बाँधा
सभी साखियें हमारी तो हवा का हाथ पकड़ें हैं,
हमहीं बस यूं बड़े गुमसुम,कड़े बंधन में जकड़ें हैं
मिली है धूप हमको बस उतनी सी या इतनी सी
अबके आयेंगे तो हम, न घुघंटा आड़ ओढेंगे
तितली और चिड़िया संग बच्चों से ही दौड़ेंगे
कहे देतें हैं बाबा हम न जल्दी भेजना हमको
लुकेंगे हम वो पहले से, और तुम खोजना हमको
यहाँ तो मौज भी बापू मिली हमको तो कितनी सी
मगर एक हम नहीं है बस. …………
-लोरी
10 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी लगी यह नज़्म।..बधाई।
happy rakhi
pyara!!!
rakhi mubarak... :)
bhai jaan ko rakhi ka prem bhara Adaaaaaab!
एक हम नहीं है। क्यों ?
बहुत अच्छी रचना..
आपके कहे मुताबिक , छोटू / मंझली और गुड्डी का भविष्य आपमें दिखाई दे रहा है जो आज आपकी टीस है , कल को उनकी होगी !
बाबुल ही नहीं भाई भी यूं समझते हैं कि विदा किया सो फुर्सत हुई , जिम्मेदारियां खत्म , उन अहसासात की कद्र ही नहीं जो बहिन के हिस्से आये हैं ! एक भुलावा सा ! ज़िन्दगी गोया मशीन सी बेहिस !
मुझे लगता है दुनिया तेज़ी से बदल रही है ... बहरहाल लिखती आप बेहद खूबसूरत हैं वज़ह साफ़ कि जो दिल से लिखे , वही बेहतर लिखे ! आपकी बेहतरी और शानदार मुस्तकबिल के लिये अनगिनत दुआएं !
aapko pata to hai
happy rakhi
praveen ji, shukriya :)
ha, mgr kuchh teesen samaj ka dhanchaa hastaantarit karwaataa hai..
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