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बुधवार, 28 अगस्त 2013

सावन की इस सुबह



सावन की इस सुबह
चुपके से यादों में
बोलो तुम क्यों आये?

आँगन में पौधों पर
 
फूलों पर, पत्तों पर
बरसाती खुशबू से
मुझ पर ही क्यों छाये

खिड़की की चौखट पर
 
मौसम की आहट से
बरसाती झोंकों में
पगलाए वंशीवट से
यमुना के तीरे तीरे
श्याम सलोने नटखट से
राधा की पायल से गुंजित
वृन्दावन के पनघट से
स्मृति की नदिया में
अश्रुपूरित नीरव तट से
कालिदास के मेघ सलौने
बोलो! मुझको क्यों भाये 

सावन की इस सुबह
चुपके से यादों में
बोलो तुम क्यों आये? 

                               

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा है, सावन सा नम।

संजय भास्‍कर ने कहा…

सावन की इस सुबह
चुपके से यादों में
बोलो तुम क्यों आय

.....बहुत ही बेहतरीन
लाजवाब