चाँद बादलों की ओंट ही राह ताकता किया
और रस्म-इ-ईद ज़मीन पर आकर चली गयी
ईद तो नाम था, दीद ए माहताब का
अपने चाँद को ये कैसे भुला कर चली गयी
ऐ ज़मीं ! ये मोहब्बत तेरी चाँद से !
तू अन्धेरे में ईदें मनाकर चली गयी
माना खुशियाँ तुझे भी तो दरकार थीं
माना, तू भी तो खुशियों की हक़दार थी
मैंने खुशियाँ भी बाँटी थी तुझको कभी
तू तो ईद में भी मुझको रुला कर चली गयी
तू ही कहती थी मुझसे कभी प्यार में
तेरे दम से ही ईदें हैं संसार में
ये ईद जानां! कोई ईद है
जो तेरे बगैर आयी और आकर चली गयी
- सहबा जाफरी
6 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार क्या ऐसे ही होती है ईद मुबारक ? आप भी पूछें सन्नो व् राजेश को फाँसी की सजा मिलनी चाहिए.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN,
abki aayegi to 'yun' n aayegi
वाह बहुत बढ़िया |
http://hindi.webdunia.com/literature-poems/आज़ादी-औरत-की-1130814030_1.htm
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shukriya Imran
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