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शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

शिकवा चाँद का



चाँद बादलों की ओंट ही राह ताकता किया 
और रस्म-इ-ईद ज़मीन पर आकर चली गयी 

ईद तो नाम था, दीद ए  माहताब का 
अपने चाँद को ये कैसे भुला कर चली गयी

ऐ ज़मीं ! ये मोहब्बत तेरी चाँद से !
तू अन्धेरे में ईदें मनाकर चली गयी

माना खुशियाँ  तुझे भी तो दरकार थीं 
माना, तू भी तो खुशियों की हक़दार थी

मैंने  खुशियाँ भी बाँटी थी तुझको कभी 
तू तो ईद में भी मुझको रुला कर चली गयी

तू ही कहती थी मुझसे कभी प्यार में 
तेरे दम से ही ईदें हैं संसार में

ये ईद जानां! कोई  ईद है 
जो तेरे  बगैर आयी और आकर चली गयी  

 - सहबा जाफरी 



  

6 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार क्या ऐसे ही होती है ईद मुबारक ? आप भी पूछें सन्नो व् राजेश को फाँसी की सजा मिलनी चाहिए.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN,

इन्दु पुरी ने कहा…

abki aayegi to 'yun' n aayegi

इमरान अंसारी ने कहा…

वाह बहुत बढ़िया |

lori ने कहा…

http://hindi.webdunia.com/literature-poems/आज़ादी-औरत-की-1130814030_1.htm

lori ने कहा…

http://hindi.webdunia.com/literature-poems/आज़ादी-औरत-की-1130814030_1.htm

lori ने कहा…

shukriya Imran