ऐ दुश्मने-जाँ! तू दुश्मन है पर जान से प्यारा लगता है
तुझे चाह के हम तो हैराँ हैं, तू कौन हमारा लगता है
बादल, मौसम, रंग, परिन्दे, खुशबू, तितली, फूल हवा
रात की रानी सूरत, मौसम का इशारा लगता है
तू पास रहे तो सब कुछ है, तू साथ नहीं तो कुछ भी नहीं
तन्हाई में डूबा डूबा शहर ये सारा लगता है
तू रौनक है मेरे जज़्बों की, तू धड़कन है मेरे नगमों की
तुम जब से मिले हो जाने- सुख़न हर गीत तुम्हारा लगता है
तुम चल न सकोगे साथ मेरे, इस बात से मै कब ग़ाफ़िल हूँ
पर साथ तुम्हारे ऐ हमदम! ये रास्ता प्यारा लगता है
-सहबा जाफ़री
10 टिप्पणियां:
बहुत खूब ! अच्छा खासा 'तू' तड़ाक-नुमा* अपनापन है आपके अशार में :)
* = चाहत रंगी पगी दुश्मनी माना जाये :)
बहुत खूब ! खासा 'तू' तड़ाक-नुमा* अपनापन है आपके अशार में :)
* = चाहत रंगी पगी दुश्मनी माना जाये :)
बहुत खूब ! खासा 'तू' तड़ाक-नुमा* अपनापन है आपके अशार में :)
* = चाहत रंगी पगी दुश्मनी माना जाये :)
सहबा ज़ाफरी की बेहतरीन नज़्म पढ़ाने का शुक्रिया।
behtreen appi....but ye h kiske liye
ali ji!
aapki awaz mere blog par
kya kahu, aisa laga, jaise bahut kuchh mil gaya :)
dewendr ji!
aap aye, bahut shriya
asif!
kaash ye kisi k liye hoti...
ye bas yu hi, sehba ji ne likhi thi kuchh saalon pahle
aaj zahan me yu hi aa gayee, so blog par daal di
aap aye, shukriya....
खूब...बहुत उम्दा रचना पढवाई .....
लिल्लाह, मोनिका जी !
आपकी आमद पर शुक्रिया ,और एक शे'र आपकी नज़र :
'आप बज़्म में शामिल हैं और हम अब तक अन्जाने हैं
आपकी ख़ुशबू फीकी है या महके ये पैमाने हैं?
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