तेरा मेरा नाम खबर में रहता था
दिन बीते एक सौदा सर में रहता था
दिन बीते एक सौदा सर में रहता था
मेरा रास्ता तकता था एक चाँद कहीं
मै सूरज के साथ सफ़र में रहता था.
सारे मंज़र गोरे गोरे लगते थे
जाने किसका रूप नज़र में रहता था
मैंने अक्सर आँखें मूंदे देखा है
एक मंज़र जो पस मंज़र में रहता था
काठ की कश्ती पीठ थपकती रहती थी
दरियाओं का पाँव भंवर में रहता था
उजली उजली तस्वीरें सी बनती हैं
सुनते हैं अल्लाह बशर में रहता था.
-राहत इन्दौरी, कलामे ए राहत "नाराज़" से.
7 टिप्पणियां:
बहुत उम्दा
मेरा रास्ता तकता था एक चाँद कहीं
मै सूरज के साथ सफ़र में रहता था ...
ब्शुत ही लाजवाब शेर रहत साहब की उम्दा गज़ल का ... ऐसे चुनींदा शेर कम ही पढ़ने को मिलते हैं आज ...
बेहद उम्दा ... आभार आपका !
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सच्चा प्यार चाहिए या नानवेज जोक..... ड़ाल करें - ब्लॉग बुलेटिन
बहुत उम्दा रचना पढवाई .....
राहत साहब बढ़िया हैं ! फोटोग्राफ चलती हुई गाड़ी से खींचा हुआ लगा रहा है शायद मोबाइल कैमरे से ? बहरहाल अच्छा है !
वाह...
बेहतरीन गज़ल...
मेरा रास्ता तकता था एक चाँद कहीं
मै सूरज के साथ सफ़र में रहता था.
राहत साहब का कोई जवाब नहीं...
अनु
बहुत उम्दा।
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