खुली आँखों में सपना झांकता है
वो सोया है कि कुछ कुछ जागता है
तेरी चाहत के भीगे जंगलों में
मेरा मन मोर बन कर नाचता है
मुझे हर कैफियत में क्यों ना समझे
वो मेरे सब हवाले जानता है
मै उसकी दस्तरस में हूँ मगर वह
मुझे मेरी रज़ा से मांगता है
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
बहाने से मुझे भी टालता है
सड़क को छोड़ कर चलना पडेगा
कि मेरे घर का कच्चा रास्ता है.
- परवीन शाकिर
वो सोया है कि कुछ कुछ जागता है
तेरी चाहत के भीगे जंगलों में
मेरा मन मोर बन कर नाचता है
मुझे हर कैफियत में क्यों ना समझे
वो मेरे सब हवाले जानता है
मै उसकी दस्तरस में हूँ मगर वह
मुझे मेरी रज़ा से मांगता है
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
बहाने से मुझे भी टालता है
सड़क को छोड़ कर चलना पडेगा
कि मेरे घर का कच्चा रास्ता है.
- परवीन शाकिर
5 टिप्पणियां:
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
बहाने से मुझे भी टालता है
जी ....ये मुकाम भी आता है.... बढ़िया पंक्तियाँ ....पढवाने का आभार
♥
मै उसकी दस्तरस में हूँ मगर वह
मुझे मेरी रज़ा से मांगता है
वाह वाऽऽह ! यही तो है सच्ची मुहब्बत !
बहुत ख़ूबसूरत …
लोरी अली जी
नमस्कार !
परवीन शाकिर की इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शुक्रिया !
आते रहना पड़ेगा आपके यहां …
हार्दिक शुभकामनाएं !
मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
लिल्लाह ! चाँद.
"चाँद की चाहत, देखो कैसे भोले दिल को ले बैठी
मन का बचपन चाँद ही मांगे, जैसे एक खिलौना चाँद....."
परवीन शाकिर की यह गजल जितनी बार पढ़ो नई ही लगती है। आपका ब्लाग भी क्या खूब है। एक से बढ़कर एक रचनाएं। बधाई और शुभकामनाएं।
लोरी,
इत्ती लम्बी ईद!
खैर, पढ़ी-लिखी सी रचना है ये... मैं अभी इस क्लास में नहीं पहुंचा!
और आपकी दिल्लगी! क्या कहने!!!
शेक्सपियर याद आ गए! ज़रूर बेचैनी की करवट ली होगी हज़रत ने कब्र में!
खुश रहिये!
ढ़
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