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शनिवार, 2 सितंबर 2023

सुनो


 

जब 

मधुश्रुत की पागल बयार छाएगी 

सूनी रजनी दुल्हिन सी शर्माएगी 

तब 

सुबह सेज के सुमनों को छू लेना 

इनमें तुमको मेरी सुगंध आएगी 

(अज्ञात ) 

13 टिप्‍पणियां:

प्रशांत शर्मा ने कहा…

यह कही सुना हुआ लगता है

बेनामी ने कहा…

🌊🌊🌊

बेनामी ने कहा…

देखना, शायद किसी पुरानी बयाज़ मे बंद हो

प्रशांत शर्मा ने कहा…

हां शायद कहीं बंद ही होगा।

प्रशांत शर्मा ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

Phir Mila kya?

बेनामी ने कहा…

बिछड़ कर डार से बन बन फिरा वह
हिरन को उसकी कस्तूरी सज़ा है!
हिरन के यहां तो रद्दी वाले नही होते, बेचारा...मगर आप के इधर तो होते हैं, कहीं दे तो नही दी रद्दी। में!!! :)

संस्कृति ने कहा…

मिल ही जाता है अक्सर । और बड़ी देर तक जहन से जाता नहीं हैं।

बेनामी ने कहा…

जंगल सा फ़ैल जाता है, खोया हुआ सा कुछ.....

बेनामी ने कहा…

देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ
हर वक़्त मेरे साथ है उलझा हुआ सा कुछ

संस्कृति ने कहा…

तिरे हमारे
सवाल सारे जवाब सारे

बहार आई तो खुल गए हैं
नए सिरे से हिसाब सारे

बेनामी ने कहा…

शुक्र है कहीं तो बहार आई....
वर्ना अरसे से हमको तो खुदके लिए एक ही शेर पसंद है:
" Khiza की रुत में,गुलाब लहजा बना के रखना कमाल ये है
हवा की जद में दिए जलाना ,जला के रखना कमाल ये है"

बेनामी ने कहा…

R u mr Nazar Anwar?