मेरे फाग भरे गीतों
को, अपने राग भरे स्वर देना
मीत! मेरे मीठे
सपनों को अपनी प्रीत का घर देना
बासंती मौसम में
बहकी मधुमासी सी हलचल में
मेरी सांसों के उपवन
को प्रीत पवन से भर देना
हर धडकन में बिछे
पलाश के स्वागत आतुर आलिंगन को
अपने हाथों मंथन कर
के प्रेम पलाश सा कर देना
प्रियतम मेरे हाथों
में जो निज सपनों की माला है
इसे समर्पण सेतु की
पहली गांठ का वर देना
परिचय की इन गांठो
को, परिणय के बंधन देकर
मेरे जीवन की संगत
पर, अपनी सरगम के स्वर देना
लोरी
12 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-03-2016) को "हुई होलिका ख़ाक" (चर्चा अंक - 2292) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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रंगों के महापर्व होली की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
परिचय को गांठ और परिणय को बंधन ?
क्या कहूं कितना प्यारा कमेंट है .....आपने सुना है वह गीत “रजनीगंधा फूल तुम्हारे......”
“ कितना सुख है बंधन में .......”
शुक्रिया गुरुदेव !
आपको होली की रंग भरी शुभकामनायें ...
बासंती मौसम में बहकी मधुमासी सी हलचल में
मेरी सांसों के उपवन को प्रीत पवन से भर देना
क्या बात .... शुभकामनाएं
सार्थक प्रस्तुति...
बहुत ही खूबसूरत गीत...बधाइयाँ
बहुत ही सुंदर रचना। अच्छा लिखा है आपने।
shukriya ji...
shukriya
सुन्दर शब्द रचना
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