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मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

कश्मकश



आँखों में  अब न नींद है, सोएं किधर से हम 
ख्वाबों की रहगुज़र में , खोएं किधर से हम 

ख़ुशियों के जो शजर थे, ख़ाली थे, बेसमर थे
इस रुत में नए आसरे , बोयें किधर से हम 

टूटे हैं इस क़दर कि, खाली हैं अब तो आँखें 
आंसू में तेरा दामन, भिगोएं किधर से हम 

चाँद के बरक्स ख़्वाब, बढ़ते ही ढल गए 
टूटी हुई आरज़ूएं , पिरोएँ किधर से हम 

शब के अगर क़रीब हों, तो चाँद भी मिले 
शब के मगर क़रीब होएं , किधर से हम 

सिलसिलए- परिशानिये- हयात देखिये 
ये सोंच मुस्कुराएं हाँ, की रोएँ किधर से हम 

                                                       सहबा जाफ़री 

9 टिप्‍पणियां:

अनूप शुक्ल ने कहा…

बढिया है!

शारदा अरोरा ने कहा…

bahut badhiya...

Sadhana Vaid ने कहा…

नाज़ुक खयालातों से सजी बहुत ही उम्दा ग़जल !

Kailash Sharma ने कहा…

टूटे हैं इस क़दर कि, खाली हैं अब तो आँखें
आंसू में तेरा दामन, भिगोएं किधर से हम
...वाह..बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

सुन्दर रचना

किस्मत में अब दीद नहीं है आँखों में अब नींद नहीं है
कहा मनाएँ होली बोलो सपनों में अब ईद नहीं है

dr.sunil k. "Zafar " ने कहा…

बहुत खूब।

ये सोच के मुस्कुराये के रोये किधर से हम

Manish Kumar ने कहा…

आँखों में अब न नींद है, सोएं किधर से हम
ख्वाबों की रहगुज़र में , खोएं किधर से हम

ख़ुशियों के जो शजर थे, ख़ाली थे, बेसमर थे
इस रुत में नए आसरे , बोयें किधर से हम

waah pasand aaye ye ashaar !

संजय भास्‍कर ने कहा…

टूटे हैं इस क़दर कि, खाली हैं अब तो आँखें
आंसू में तेरा दामन, भिगोएं किधर से हम
.........................बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल ...वाह

Armaan... ने कहा…

sona sikh lijiye..sehat ke liye mufeed hai...