मै वह भाषा हूँ जिसमे तुम गाते हँसते हो
मै वह भाषा हूँ जिसमे तुम, अपने सुख दुःख रचते हो
मै वह भाषा हूँ जिसमे तुम सपनाते हो, अलसाते हो
मै वह भाषा हूँ जिसमे तुम, अपनी कथा सुनाते हो
मै वह भाषा हूँ जिसमे तुम, जीवन साज़ पे संगत देते
मै वह भाषा हूँ जिसमे तुम, भाव-नदी का अमृत पीते
मै वह भाषा हूँ जिसमे, तुमने बचपन खेला और बढे
हूँ वह भाषा जिसमे तुमने यौवन ,प्रीत के पाठ पढ़े
'माँ ! मित्ती का ली मैने' तुतला कर मुझमे बोले
माँ भी मेरे शब्दों में बोली थी, 'जा! मुँह धोले'
जे जे करना सीखे थे, और बोले थे अल्ला अल्ला
मेरे शब्द खजाने से ही, खूब किया हल्ला गुल्ला
उर्द्दू मासी के संग भी, खूब सजाया कॉलेज मंच
रची शायरी प्रेमिका पे, और रचाए प्रेम -प्रपंच
आँसू मेरे शब्दों के और प्रथम प्रीत का प्रथम बिछोह
पत्नी और बच्चों के संग फिर, मेरे भाव के मीठे मोह
सब कुछ कैसे तोड़ दिया और सागर पार में जा झूले
मै तो तुमको भूल न पायी, कैसे तुम मुझको भूले
भावों की जननी मै, 'माँ' थी, मै थी रंग तिरंगे का
जन जन की आवाज़ भी थी , स्वर थी भूखे- नंगों का
फिर क्यों एक पराई सी मै, यों देहरी के बाहर खड़ी
इतने लालों की माई मै, क्यों इतनी असहाय पडी
-लोरी
8 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर, अर्थपूर्ण पंक्तियाँ रची हैं लोरी..... शुभकामनायें
सुंदर रचना...शुभकामनाये स्वीकार करें
bahut sundar
अपनों के घर नेह मिलेगा,
बोली का स्नेह मिलेगा।
इतने लालों की माई मै, क्यों इतनी असहाय पडी
जिस तरह जिंदगी अपना रास्ता खुद तलाश लेती है, वैसे ही हिंदी भी एक दिन अपना रास्ता खुद तलाश लेगी।
अब इंटरनेट माध्यम ही देखिए, पहले ब्लॉगिंग और अब सोशल मीडिया में भले ही दूसरे धड़े के रूप में ही, हिंदी ने प्रमुखता से अपना दबदबा बनाया है...
आगे और रास्ते खुलेंगे।
क्या गज़ब लिखा है आपने तो कमाल कर दिया…….बहुत ही खुबसूरत साथ में तस्वीर भी हँसते हुए बच्चों की बहुत बढ़िया है |
बहुत ही सुंदर रचना...शुभकामनाये
कवितामंच पर अपने अपमी प्रतिक्रिया दी इसकेलिए बहुत आभार
संजय भास्कर
शब्दों की मुस्कराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
ahaa ji
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