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शनिवार, 31 दिसंबर 2016

फ़िनिक्स







अंजाम से  आग़ाज़  कर
उठ कर ज़रा परवाज़ कर

रख दे  परे   मायूसियां
तू ज़िंदगी को साज़ कर

ख़ामोशियां सरगम पे हों
नाकामियां परचम पे हों

तो ज़ीस्त भी खिलती नही
और मौत भी मिलती नही

उठ! तू ख़ुद की ख़ाक से ही 
तामीर-ए-ख़ुद  जांबाज़ कर 
सेहबा 

5 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुन्दर ।
नववर्ष की मंगलकामनाएं ।

sehba jafri ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत लाजवाब नज़्म ... आशा और उम्मीद को बुलंदियों तक पचुचा दिया इन शब्दों में ...

Unknown ने कहा…

वाह.....

अनूप शुक्ल ने कहा…

बहुत खूब !