अपनी रुस्वाई तेरे नाम का चर्चा देखूँ
एक ज़रा शेर कहूँ , और मैं क्या क्या देखूँ
नींद आ जाये तो क्या महफिलें बरपा देखूँ
आँख खुल जाए तो तन्हाई का सहारा देखूँ
शाम भी हो गयी धुंधला गयी आँखें मेरी
भूलने वाले, कब तक मैँ तेरा रास्ता देखूँ
सब ज़िदें उसकी मैं पूरी करूँ, हर बात सुनूँ
एक बच्चे की तरह से उसे हँसता देखूं
मुझ पे छा जाये वो बरसात की खुशबू की तरह
अंग अंग अपना उसी रुत में मेहकता देखूं
तू मेरी तरह यक्ताँ है मगर मेरे हबीब !
जी में आता है कोई और भी तुझसा देखूं
मैंने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस एक बार
ख्वाब बन कर तेरी आँखों में उतरता देखूँ
तू मेरा कुछ भी नहीं लगता मगर ऐ जाने हयात !
जाने क्यों तेरे लिए दिल को धड़कता देखूँ
टूट जाएँ कि पिघल जाएँ मेरे कच्चे घड़े
तुझ को देखूँ के ये आग का दरिया देखूँ
- परवीन शाकिर
29 टिप्पणियां:
Very very nice and a poem of real thought lovely words telling the life of modern life
बढ़िया ! बहुत दिनों बाद आप तक पहुँचने का मौका मिला ! मुझे लगता है दूसरे शेर में तन्हाई का सहारा नहीं सहरा होना चाहिए ? क्या पता मैं गलत भी होऊं !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (12-10-2015) को "प्रातः भ्रमण और फेसबुक स्टेटस" (चर्चा अंक-2127) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, बाप बड़ा न भैया, सब से बड़ा रुपैया - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 13 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बेहतरीन। मक्ते का शेर तो लाजवाब है!
तू मेरी तरह यक्ताँ है मगर मेरे हबीब !
जी में आता है कोई और भी तुझसा देखूं
मैंने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस एक बार
ख्वाब बन कर तेरी आँखों में उतरता देखूँ.
बहुत खूब अशआर.
तू मेरा कुछ भी नहीं लगता मगर ऐ जाने हयात !
जाने क्यों तेरे लिए दिल को धड़कता देखूँ
...वाह...बहुत सुन्दर...ख़ूबसूरत ग़ज़ल..
शाम भी हो गयी धुंधला गयी आँखें मेरी
भूलने वाले, कब तक मैँ तेरा रास्ता देखूँ
..बहुत सुन्दर
.
बहुत ही खूबसूरत अशआर की प्रस्तुति। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
शुक्रिया ! साथ बना रहे.... :)
my pleasure guru dev!!! शुक्रिया ! साथ बना रहे.... :)
शुक्रिया ! साथ बना रहे.... :)
शुक्रिया ! साथ बना रहे.... :)
आप आये बहार आई …। शुक्रिया ! साथ बना रहे.... :)
आप आये बहार आई …।
आप आये बहार आई …।
शुक्रिया ! साथ बना रहे.... :)
शुक्रिया ! साथ बना रहे.... :)
आप बिल्कुल सही हैं ……
"तन्हाई का सहरा देखूं " ही सही है। …।
आपका कमेंट , गोया ख़ुद से बात !!!
जैसे किसी ने सिर पर मोहब्बत भरा हाथ रख बहुत अपनाइयत से पूछा हो :
" क्या हुआ! लिखना तो ज़रूरी है भाई@@@@!!!
शुक्रिया ! साथ बना रहे.... :)
ये ठीक है :)
वाह, बहुत उम्दा
हर शब्द दिल को छूकर गुज़रता सा है ! बहुत ही उम्दा ग़ज़ल !
सुनो ...... जिस दिल में बसा था प्यार तेरा , उस दिल को कभी का तोड़ दिया ।
बदनाम न होने देंगें तुझे , तेरा नाम ही लेना छोड़ दिया ......
रचना खूगसूरत है बेशक ..... मगर हमें एक पक्षीय नजर आई ..... लिहाजा .....
बहुत ही बेहतरीन,हरेक शेर दिल को छू गया।
shukriya......
shukriya......
shukriya......magar sahab! " जिस दिल में बसा था प्यार तेरा , उस दिल को कभी का तोड़ दिया ।
बदनाम न होने देंगें तुझे , तेरा नाम ही लेना छोड़ दिया ....." ko kya samjhu!!!!
thnx ji....
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