हे ईश्वर !
अगर तुम " ही " हो
तो पुरुषों के लिए हर्ष का विषय है
अगर " शी " हो तो
और भी अच्छा कि
जीवन और जीवन शक्ति दोनों
तुम से हैं
देखो!
मैं तो डरती हूँ
नपुंसकता से, कायरता से
तुम्हारे कुछ नहीं रहने से
और उन बदलते ढंगों से
जिससे तुम
आहिस्ते -आहिस्ते
"इट " हो रहे हो
- लोरी
14 टिप्पणियां:
kyaa bat hai ji bhut khoob !!
गहरी रचना ... इंसान इश्वर से आगे निकल गया है ... अब कौन जानना चाहता है की वो कौन है ...
Vakai..... Gahan Abhivykti
लाज़वाब चिंतन..
shandar..
shaaandaaaaaaaaaaaaaaarrrrrr......IT hone tak ka silsila..khub kaha
गजब, गहरा।
thnx ji :)
शुक्रिया
शुक्रिया
शुक्रिया
:) शुक्रिया
शुक्रिया
बहुत खूब....
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