सहरा सहरा, गुलशन गुलशन गीत हमारे सुनियेगा
याद बहुत जब आएंगे हम, बैठ के सर को धुनियेगा
आज हमारे अश्क़ों से दामन को बचा लें आप मगर
ये वह मोती हैं कल जिनको शबनम शबनम चुनियेगा
हमसे सादा -दिल लोगों पर ज़ौक़े असीरी १ ख़त्म हुआ
हम न रहे तो किसकी ख़ातिर , जाल सुनहरे बुनियेगा
दिल की बातें तूलानी हैं, और ये रातें फ़ानी हैं
मैं कब तक बोल सकूँगा आप भी कब तक सुनियेगा
जिस 'सेहबा ' के दिल देने के क़िस्से से नाराज़ हैं आप
उसने आख़िर जान भी देदी , ये भी एक दिन सुनियेगा
- सेहबा अख़्तर
१ -क़ैद का मज़ा
8 टिप्पणियां:
सार्थक प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (14-02-2015) को "आ गया ऋतुराज" (चर्चा अंक-1889) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
पाश्चात्य प्रेमदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत उम्दा ग़ज़ल !
बहुत खूबसूरत गज़ल
Bahut Umda....Waah
बेहतरीन ग़ज़ल।
बहुत खूबसूरत गज़ल
वाह...लाजवाब..
एक टिप्पणी भेजें