नहीं छेड़ते पंछी सुबह
ताज़गी की सरगम
नहीं जागते हम अब
भौर की उजास के साथ
वीडियो गेम की
लत में डूबा बचपन
सुनता है
मोबाइल में लोरी
पहला प्यार
होता है अब
केमिस्ट्री लैब में
और करहाने लगता है
फ़िज़िक्स लैब की
सीढ़ियों तक आते आते
मॉल में
बुनते हैं सब सपने
घास, पंछी, दूब नदियाँ
दूर तक नही आती
ख़्वाब के किनारों में
कैमिकल की नकली बारिशों में
भीगती प्यार की कोमल भावनाएं
नक़ली गुलाब की कलियाँ थामे
नाचती हैं
नक़ली पेड़ों के इर्द गिर्द
भीड़ भरी सड़कों की
धूल भरी आपाधापी
पैदा करती है
ऐसी ग़ज़लें
जिनमे नहीं होती आक्सीजन
वी ऍफ़ एक्स के
इफेक्ट्स से पैदा हुए
चाँद के इर्द गिर्द
हाले को देख ,
ए. सी. में बैठे
बच्चे गुनगुनाते हैं
चन्दा मामा दूर के
- लोरी
इमेज : गूगल से साभार
5 टिप्पणियां:
अति सुंदर पेशकश ...दाद कबूल फरमाइयेगा....
shukriya ji....
प्रकृति से दूर तो हुए हैं | तकनीक में हद से ज़्यादा उलझ गए हैं
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