सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तेहां और भी हैं
तही ज़िन्दगी से नहीं ये फज़ाएँ
यहाँ सैकड़ों कारवां और भी हैं
क़ना'अत न कर आलमे रंगों बू पर
चमन और भी आशियाँ और भी हैं
अगर खो गया एक नशेमन तो क्या गम
मुकामात- ए -आहो-फुगाँ और भी हैं
तू ताईर है परवाज़ है काम तेरा
तिरे सामने आसमां और भी हैं
इसी रोज़ ओ शब् में उलझ कर न रह जा
कि तेरे ज़मान ओ मकां और भी हैं
गए दिन कि तन्हाँ था मै अंजुमन में
यहाँ अब मेरे राज़दां और भी हैं
-अल्लामा मोहम्मद इक़बाल
ताईर - पंछी , तही-ख़ाली , क़ना 'अत - संतुष्टि , मुकामात-इ-आहो-फुगाँ -रोने और आह भरने की जगह, ज़मान ओ मकां -वक़्त और जगह ,
1 टिप्पणी:
bahot sunder. share karne ke liye shukriya.
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