सुबह सुबह के उनींदे अस्पताल के गलियारे में उसकी सिसकियाँ गूँज रही थी . वह सुबक रही थी , अकेली नहीं थी शायद साथ वाली स्त्री उसकी माँ थी। अस्पताल के रिसेप्शन पर अबोर्शन के लिए फॉर्म भर पति के साइन की गुहार हुई तो पता चला कि इस रिश्ते का अबोर्शन बच्चे के अबोर्शन के ठीक दो दिन पूर्व हुआ है.
अभी एक ज़ख़्म भरा नहीं और कुछ शारीरिक समस्याओं के चलते दूसरा ज़ख़्म .
चेहरा पीला, आँखे उदास और लिबास में हज़ारों सलवटें; लगता था जैसे कुछ भी ठीक है ही नहीं .
तभी नर्स आकर उसे ऑपरेशन थियेटर ले जाने की तय्यारी करने लगी . बाएं हाथ में बेहोशी की दवा इंजेक्ट करते डॉक्टर सा'ब उसके बहते आंसुओं पर उसे दिलासा दे रहे थे, "कुछ नहीं होगा बेटी! मेडिकल साइन्स ने बड़ी तरक्की कर ली है, तुझे पता भी नहीं चलेगा, बस दो मिनट में सब हो जाएगा, कोई दर्द नहीं , बस सारे दर्द ख़तम!"
"मालम है बड़ी तरक्की कर ली तुम्हारे साइंस ने, सरीर के सारे घाव भर देता है डाक'साब! पर दो महीने से माँ बन कर जीती उसकी आत्मा, और पूरे माँ बन चुके उसके मन के दरद का अबोर्सन भी कर देता तो ठीक होता....." किसी काम से ओ. टी . में आयी काम वाली बाई बडबडा रही थी .
4 टिप्पणियां:
kya bolun! speechless hun. km shbdon me uss bchchi ke mn ke ghaavon ko samne la diya tumne...........do do ghav ek sath....shadi ka tootna....bchche ka ant.....
मन की पीड़ा को कौन हटायेगा।
The treatment of Soul lies in spirituality Lori!
D
--
Thirteen Expressions of Love!!!
so true
एक टिप्पणी भेजें