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मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

चल बैठें चर्च के पीछे ....


दिल  की सुनसान   गलियों से
गुज़रता आखिरी तन्हाँ क्रिसमस
पूरा चाँद और ठंडी हवा
न  पाने की खुशी
न ही खो देने का गम

जीना ज़रूरी है
बेबसी आदमियों और फूलों की
ज़िन्दगी का एक हिस्सा है
मसीहा शायद इस ही ज़िन्दगी की ख़ातिर
खुद को कुर्बान कर गए हैं

शाम  रोज़ होती है मगर
छुट्टी सिर्फ क्रिसमस को ही मिलती है 
चर्च रोज़ सायें सायें करता है
मगर आज आबाद है

आज शाम सब कुछ सजा है
मगर मेरा दिल बुझा है
इस सजे धजे शहर में
मै  बिलकुल तन्हां हूँ
डरा हुआ अकेलेपन से

शुक्र है
कल फिर रोज़ की तरह
मै दफ्तर में हूँगा
कई सारे अकेले लोगों के बीच
एक और अकेला

कल नहीं है कोई त्यौहार
नहीं सुनूंगा मै
 अपनी आत्मा का शोर
नहीं डरूंगा मै
घर  के, अंदर के अकेलेपन से

लौट कर दफ्तर से
गुजारूँगा वक़्त
कबूतरों के साथ
बैठ कर चर्च के पीछे .....

  


6 टिप्‍पणियां:

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

:)

lori ने कहा…

mry x-mas :)

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

Merry Xmas.... Lory! No... Lorry!
:-)

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सीधे ईश्वर से ही बातें..

उड़ता पंछी ने कहा…

Happy New year.

next year no alone system !!

New post
Milli Nayi Raah!!

शिवनाथ कुमार ने कहा…

सुन्दर रचना ,,,
ये पंक्तियाँ मुझे काफी अच्छी लगी ,,,

जीना ज़रूरी है
बेबसी आदमियों और फूलों की
ज़िन्दगी का एक हिस्सा है
मसीहा शायद इस ही ज़िन्दगी की ख़ातिर
खुद को कुर्बान कर गए हैं


देर से ही सही
नव वर्ष की शुभकामनाएँ ! :-)