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मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012


कितना सहल जाना था
खुशबुओं को छू लेना
कितना सहल जाना था
बारिशों के मौसम में शाम का हर एक मंज़र
घर में क़ैद कर लेना
कितना सहल जाना था
जुगनुओं की बातों से फूल जैसे आँगन में
 रोशनी सी कर लेना
कितना सहल जाना था
उसकी याद का चेहरा
ख्वाब्नाक आँखों की
झील के जज़ीरों पर देर तक सजा लेना 
कितना सहल जाना था
ऐ नज़र की खुशफहमी!
इस  तरह नहीं होता
तितलियाँ पकड़ने को दूर  जाना पड़ता है .
                                                      -  हुमा शफीक हैदर

3 टिप्‍पणियां:

उम्मतें ने कहा…

बेहद खूबसूरत ! मानीखेज़ !

उड़ता पंछी ने कहा…

ऐ नज़र की खुशफहमी!
इस तरह नहीं होता
तितलियाँ पकड़ने को दूर जाना पड़ता है .


Amazaing.

पोस्ट
चार दिन ज़िन्दगी के .......
बस यूँ ही चलते जाना है !!
http://udaari.blogspot.in

lori ने कहा…

adab!
and i miss u on my new posts...
kaise hain aap!
http://meourmeriaavaaragee.blogspot.in/2012/12/blog-post_25.html?showComment=1356447167236