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मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

सिर्फ तुम.....!!!!!




तुम्हारी
साँवली मुस्कराहट
और ये पगला सलोनापन!
कुछ न जानने की चाह
और कुछ भी न जान पाने की बेबसी
ये उलझी-उलझी अलकें
और सुलझी-सुलझी आँखे
कुछ न कहना
और सारे वादे कर लेना
काश!!!
तुम जान पाते
कि न चाह कर भी
मैंने सिर्फ
तुम्हे ही चाहा है

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

ये गीत मेरे लिए? हा हा हा
सिर्फ तुम.....!!!!!

'तुम्हारी
साँवली मुस्कराहट
और ये पगला सलोनापन!
कुछ न जानने की चाह
और कुछ भी न जान पाने की बेबसी' न भी लिखा हो मेरे लिया तो भी सच बताऊं खुद को पाया मैंने तुम्हारे लिखे हर शब्द में.
शुक्रिया कि मेरी अजनबी नन्ही सी दोस्त मुझे प्यार करती है.वैसे ये अच्छी रचना है जैसे किसी को सामने बिठा कर तुमने उसका 'पोट्रेट'बना दिया हो.शब्द-चित्र खींचना इसी को कहते हैं.प्यार.

Amit Chandra ने कहा…

maaf kijiyejga lori ali ji, par kuch ajeeb sa laga.