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शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

चाँद किसी का हो नहीं सकता
चाँद किसी का होता है
चाँद की खातिर जिद नहीं करते
ऐ मेरे अच्छे इंशा चाँद!!!!
-इब्ने इन्शां

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

तुमने कहा और मैं मान लूं? मैंने कई बार उठा कर उसे माथे पर सजा लिया बिंदिया की जगह.जगमगा उठा मेरा माथा.आसमान से उतारकर सूनसान गलियों में घूमी उसके साथ.कभी मैंने थामे रखी उसकी अंगुली और कभी वो मेरी थाम कर चलने लगा.
खूब रोई उसके गले से लग कर कई बार.
यकीन नही? 'इंदु' यानी 'चाँद' और खुद से दूर कभी नही रही.
अपने भीतर भी कई चाद है मेरे. देखना हो तो देखना सिसकता है मेरे भीतर एक चाँद.मेरे आंसू उसकी आँखों से बहते हैं.शब्दों का खेल नही रच रही.सचमुच ऐसीच हूँ मैं.