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मंगलवार, 14 सितंबर 2010

ये क्या है मोहब्बत में तो एसा नहीं होता
मै तुझसे जुदा होके भी तनहा नहीं होता

इस मोड़ से आगे भी कोई मोड़ है वरना
यूँ मेरे लिए तू कभी ठहरा नहीं होता

या इतनी न तब्दील हुई होती ये दुनिया
या मैंने इसे ख्वाब में देखा नहीं होता

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

मै तुझसे जुदा होके भी तनहा नहीं होता'
बहुत प्यारा शे'र है.इश्क में तनहा वो होते है जो महबूब से जुदा होते हैं.दोनों एक जां हो जाये तो कैसी तन्हाई? एक नही हुए तो ये कैसा इश्क? है न? लिंक देते रहना जब भी कुछ नया लिखो.भूल जाती हूँ.पर....अच्छा पढ़ने की शौक़ीन हूँ.
ये बताओ मेरे ब्लॉग का पता कैसे चला?

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

मै तुझसे जुदा होके भी तनहा नहीं होता...
यहाँ आकर रचना पढ़ आनंद आया.