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रविवार, 6 फ़रवरी 2022

रहे न रहें हम...... Webdunia se sabhar .....

सन्डे की सुबह , लम्बी  कोरोना  पॉज़ी टिव रह कर हालिया नेगेटिव हुई.   घर सर  र  ही आ रहा था. कहाँ से क्या शुरू करूँ की जद्दोजहद से  हले लता जी का एकाध गीत  सुन लिया जाए , दिन भर के लिए कामों की प्लानिंग आसान  हो जायेगी! खुद ब खुद जैसे मोबाइल पर प्ले हुआ, " चिट्ठिये दर्द फ़िराक़ वालिये/ लेजा लेजा संदेसा सोणी यार दा...." मन मनिहारा हुआ अपनी ही चूड़ियों में खोया था कि खबर आई आज मौसीक़ी के हाथों की चूड़ियाँ चटक गईं.... ब्रीच कैंडी अस्पताल में लता जी का पार्थिव शरीर अपनी आभा  ऐसे बिखेर रहा है मानो स्वर्ग की वस्तु स्वर्गीय होने जा रही है थोड़ा समय और निहार लो...  लिखने वाले ने लिख डाले मिलन के साथ बिछौड़े।

मेरा मन पीछे भागने लगा,  मैं  खुद को फिलिप्स का अपना रेडियो सेट बाहों में भरे  फर्स्ट ईयर की अभी अभी जवान हुई लड़की सा महसूस करने लगी , कानों में उनका गाया वह गीत गूंजने लगा  जो मैंने पहले पहल सु ना था , " तेरे बिना ज़ि न्दगी से कोई शिकवा तो नही...." और लगा बड़े मौसा जी पीछे से आ कर कह रहे हों, आवाज़ बढ़ा दे ज़रा ! लता दीदी का गाना है। .."  फिर से विविध भारती सुनने वाली दोपहरी समाअत के दालानों में अपने होने  का एहसास कराने लगीं...    गुड्डी चाची! आवाज़ बढ़ा दो ज़रा!  अकेले अकेले मत सुनो।  ज़िंदगी और कुछ भी नहीं , तेरी मेरी कहानी हैं....., नाहिदा बाजी! अंताक्षरी में  " भ " से क्या गाओगी?  " भँवरे ने खिलाया फूल , फूल को ले गया राजकुमार"! कहाँ हर घर  मुहैया था रेडियों , एक चला दे तो पूरा टोला , पूरा मोहल्ला और पूरी चॉल  सुन लेती थी कि लता दीदी गए रही हैं  ले 

उन दिनों दोपहरी लम्बी लगती थी, मोहल्ले टोले की औरतें आँगन लीपते, गेहूं चुनते और दीवाली की सफाई करते लता दीदी के गाने गुनगुनाया करतीं ," सात समुन्दर पार से, गुड़ियों के बाज़ार से... , तुम मुझे यूं भुला न पाओगे..... , अजीब दांस्ता है ये.., ज्योति कलश छलके... और मेरी माँ का सदा सर्वदा का पसंदीदा , " नैनों में बदरा छाये... विविध भारती को तो पहचान ही लता जी की आवाज़ से मिली थी , और जब फरमाइशी गीतों वाले खत में रेडियों आर्टिस्ट लता जी के गाने सुनाने की फरमाइश के साथ हमारा नाम क्या पढ़ती लगता था , लता जी हमारे बिलकुल करीब हैं , साथ साथ ! कौन ऐसी गायिका होगी जिसके स्वर को पीडियों का प्यार मिला है , मुझे दादी के व्यथित स्वर सुनाई देते हैं मानो मनुहार करते कह रहे हों, " दो हंसों का जोड़ा बिछुड़ गया रे.... सुनवा दे  रेडियो पर.... थोड़ा जी लगे.....|  

यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी की सीढ़ियों पर मिलते  गोपाल भइया  अपनी प्रेमिका को अपनी पत्नी ऐसे ही तो नहीं बना पाए थे .... कैसे बावले हो जाते थे जब भाभी गाती थीं, " फूल हंसा चुपके से...." नैपथ्य में तो लता जी ही हंसती थी,  सुवर्णा दीदी और पराग भइया का गुपचुप परवान चढ़ता प्रेम , " मुझे तुम मिल गए हमदम.... " या  "हमको मिली हैं आज ये घड़ियाँ नसीब से......"   और नब्बे के दशक का मेरा पहला पुरुष मित्र जिसने मुझसे मित्रता एक गीत सुनने के बाद की थी, " सिर्फ एहसास है ये , रूह से महसूस करो......  " एक दशक से भारत के हर आँगन के दुख दर्द में  लता जी के स्वर शामिल रहे , शगुन , बधाई , प्रेम विछोह, सेहरा, घोड़ी , फेरे या बिदाई  और पीढ़ियों के दुःख में शामिल आवाज़ आज  हमें सदा सर्वदा के लिए छोड़ गयी. 

मुझे बाई स्कोप की बातों के दौरान कमल शर्मा जी द्वारा सुनाया गया   प्रसंग याद आ रहा है , जिन दिनों लता जी ने गाना प्रारम्भ किया था, इंडस्ट्री में शमशाद बेगम जैसी गायिकाओं की  तूती  बोलती थी , सधे हुए पल्ले की साड़ी में लिपटी षोडशी ने जब   झिझकते हुए पहला गीत रेकॉर्ड किया था ,  शमशाद बेगम ने उनका माथा चूमा और खुश हो कर , एक रुपया उनकी हथेली  पर धर आशीर्वाद दिया, " जियो और नूर बन कर पूरी दुनिया पर छा जाओ...  लता जी ने उस सिक्के को आशीर्वाद समझ पूजा घर में  छोड़ा और पीछे मुड़  कर नहीं देखा !  ये वह दौर था जब कलाकारों  में एक दूसरे को लेकर गहरी मोहब्बत हुआ करती थी.

कहते हैं, महान कलाकार अपने सीने में बड़े दुःख छिपाये जीते हैं, और यही दर्द उनकी प्रतिभा के शिखर का अंतिम पड़ाव होता है. जीवन भर स्वर उपासिका रही लता जी ,  जिन की आवाज़ में नूर का पूरा सूरज छिपा था, जिसने हर मौके पर हर जज़्बात को जुबां दे दी , इस मुल्क की हर दोशीज़ा के सन्देश को उसके आशिक़ तक पहुंचाया स्वयं अपने प्रेमी से यह न कह सकीं कि शिद्दत की किन इन्तेहाओं से गुज़र कर वे उनसे कितना प्रेम करती थी! राज सिंह डूंगरपुर (जो प्रेम से लता को मिट्ठू कहते थे ) अपने अंतिम समय तक लता जी से प्रेम करते रहे , लता भी उस मोहब्बत को सीने में छुपाये सुपुर्दे ख़ाक हुईं, बेशुमार जज़्बातों में रूह फूंकती आवाज़  अप् ना  ही हाल दिल नहीं कह पाई , शायद ये अधूरापन इन्हे फिर से दुनिया में आने को मजबूर करे , कौन जाने दीदी इस अधूरी ख्वाहिश को पूरा करने ही दुबारा आएं और हमें लता दीदी फिर मिल जाएँ....     

सब खाम ख्याली है... कश्मीर से प्रोफेसर फिरदौज़ का फोन आया है  , कह रहे हैं " चिनारों की सुर्ख़ियों के गीलेपन की क़सम है सहबा! लता दीदी जन्नत से उतारी गईं, अल्लाह का वह करिश्मा थीं जो आवाज़ का गौहरे ,नायाब था....   सरहद पार से आबिदा परवीन के दुखद स्वर रेडियो सेट पर गूँज रहें हैं, वे व्यथित सी कोई श्रृद्धांजलि गा रही हैं.....    टीवी पर खबर आ रही, " लता जी का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ  शिवा जी पार्क में होगा। सरहदें अपने झगड़े भूल गईं हैं, सियासतें सहम गयी हैं और सत्ता , सत्ता कुर्सी कुर्सी गाने वाले स्तब्ध भाव से देख रहें हैं कि आज सचमुच की वह मलिका जा रही है जिसने पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों के दिलो पर राज किया और जिनकी जगह कोई भी कभी भी नहीं ले सकता .......  

सीमा पार से 

5 टिप्‍पणियां:

मन की वीणा ने कहा…

अश्रु छलका दिए हृदय की गहराई से निकले इस लेख ने।
अभिनव।

Unknown ने कहा…

shukriyA

रेणु ने कहा…

जब कला ऊंचाइयों को छू लेती है तो सरहदें बहुत नीचे रह जाती हैं। लता मंगेशकर ने संगीत को नई पहचान दिलाई और वे सुर साधना से ही अमरत्व को प्राप्त हुई। समस्त कटुताओं और देश की सीमाओं को भुला कर सब लोगों ने उन्हें अपना माना और निष्कलुषता से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी यही उनके जीवन की सार्थकता है। एक भावभीना लेख जो मन भिगो गया।🙏🙏

Sudha Devrani ने कहा…

सचमें बहुत ही हृदयस्पर्शी लेख !!!
लग रहा था जैसे पढ़ नहीं सुन रहे हैं रेडियो पर..बीच -बीच में लता जी के स्वर में ही गाने की पंक्तियां गूँज सी रही थी जैसे विविध भारती पर।
बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं लाजवाब लेख हेतु।

lori ने कहा…

shukriya
saath banaa rahe