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रविवार, 22 जनवरी 2017

तुम भी पहले पहल , हम भी पहले पहल

            



             सुबह सुबह दरख्तों में पानी डालने गयी, क्या देखती हूँ, नंन्हे से गुलाबी गुलाब में ताज़ा मोतिया फूल अपनी ख़ुशबू बिखेर रहा है. पूरी बगिया रोशन हो गयी उसकी महक और खूबसूरती से.  दो पल को लगा परिस्तान से कोईं शहज़ादी उतर आयी हो, और मेरे फूल का भेस बदल मुस्कुरा रही हो. खुदाया!! दिल बेवजह खुश हो आया।  मैंने तो नहीं लगाया था यह गुलाब।  इस बारिश खुद ही पनप आया नीम की क्यारियों में। ज़हन पर बहुत ज़ोर डाला तब याद आया कि  पिछली शबेकद्र रूमान जब भैया मियाँ के साथ बडे अब्बू की क़ब्र पर फातिहा पढने गया  था तब वहीँ  से टहनी समेत तोड़ लाया था एक गुलाब. और खेल खेल में ज़मीन में खोंस ,अपनी छुट्टियां पूरी कर वापिस शहर को भी आ गया था।  कितना खुश होगा जानकर 'उसके लगाए पहले दरख्त का पहला फूल'।
                  कमबख्त ये पहला!!! मुझे जाने क्या क्या पहला पहला याद आने लगा. समीना बाजी के लिए फ़ारूक़ भाई ने जो लाल फूल हमें बच्चा समझ के हमारे ही हाथों भिजवाया था वह, या सुवर्णा ताई को पराग भैया ने जो ताज़ा तरीन फूल दिया था वह, मदरसे की सीढ़ियों  पर फरीदा ने जो सुर्ख़  फूल लजाते हुए, मेरे भाई साहब के लिए दिया था वह, या स्लेट पर उसी का लिखा पहला आई लव यू  जिसमे  "यू" में मात्रा भी गलत लगी थी। पहली बार खरीदी गयी डायरी, पहली बारिश में पहली बार भीगना, पहली बार साइकल चलाने पर गिरना, या पहली पहली लूना से पहला पहला एक्सीडेंट। पहला पहला कितना गुदगुदाता सा लगता है , जैसे अभी अभी ही हो कर गुज़रा हो.

                    पहली बार जब नानी के दरख्तों से अमरुद तोड़ खुद खाया था.  नए नये फ्रिज की पहली पहली बर्फ़ , जो खाई भी थी और पड़ोस की पिंकी बाजी के कुर्ते में चुपके से डाल भी दी गयी थी. पहले पहले ब्लैक एंड व्हाइट टी. वी.की पहली फिल्म , "दुनिया ना माने " और कलर टी वी की " संजोग " पहले  मिल्कमेड से बने पहले नारियल लड्डू और जी बाज़ार पर तो इस पहले पहल  का यूं ज़ोर था कि " पहला पहला लांच किया वनस्पति घी आज भी " डालडा " ही कहलाता है , पहली पहली स्टोरवेल जो गोदरेज थी आज भी आधे हिंदुस्तान की जुबां पर " गोदरेज की अलमारी "  के रूप में ही याद की जाती है और वाशिंग पाउडर का यह आलम है कि उसका तो नाम ही "सर्फ़" पड गया है  और जी ! कितना अरसा भारत की सारी मोटर साईकल " राजदूत " ही कहलाती रहीं और  एक से एक अंग्रेज़ी नामो की क्वाइल्स आ जाने के बावजूद भी , मच्छर ,मारने की अगरबत्ती को लोग "कछुआ" ही कहते रहे. 

                   गादियां चाहे किसी और कंपनी की हों , " डनलप" वाली ही कहलाती हैं, दांत मांजने का काला मंजन चाहे  हाथी छाप हो  कहलाता " बिटको " ही है ; जलने पर आप कुछ भी लगाएं नाम उसका " बरनाल"  ही  निकलता है, और बर्तन चाहे जिससे  धोएं , जब पाउडर ख़त्म होता है,  माँ याद दिलाती है, "विम"  ख़त्म हो गया है. वक़्त कैसे गुज़रे सफहों सा ही फड़फड़ा जाता है जब  याद आता है, " पहली पहली स्कूटर जब एक दिवाली घर के दरवाज़े आकर रुकी तो उपाध्याय आंटी की आरती थाली से भी पहले हम बच्चों ने जो गाकर  उसका इस्तक़बाल किया था वह गाना था , " हमारा बजाज......"" ये कोईं बड़े ब्रांड नहीं , पर  ज़िंदगी में पहले पहल आये वह बदलाव थे  जो चुपके से ज़हन में दाखिल हो गहरा असर कर जाते थे  , जो कीमतों से नहीं एहसासों से याद आते थे और जो टी वी  पर आने वाले इश्तेहार ही नहीं थे बल्कि हमारी ज़िन्दगी के सुख दुःख के बराबर के शरीक थे .

                       पहली बार नसीम बाजी ने मुझे चाँद रात पर चूड़ियां पहनवाई थीं, और एक ईद पहली बार मुझे एहसास हुआ था कि मैं भी एक लड़की हूँ, जब पहले पहल ही उसने मज़ाक में ही मुझे छेड़ दिया था कि " जी साहब ! चूड़ियां आपने पहिनी और हम रात भर इनकी खनखन सुनते रहे "  यूनिवर्सिटी की सीढ़ियों पर बेवजह बैठ वह पूरी ईद सिवैयों  का इंतज़ार करता रहा और मैं अंजना के घर पढने जाने के बहाने  पूरा दिन उसी कैम्पस में मधुकामिनी की टहनियों  में दुबकी  डिब्बा लेकर बैठी रही मगर देने की हिम्मत नहीं जुटा पायी।  अगले दिन दोनों ने एक दूसरे से कहा , " छुट्टी थी , भला कैसे आते "  वह दौर ही ऐसा था , माकूल वक़्त का इतंज़ार करते करते माशूका और आशिक़ अस्पताल की सीढियो पर ही मिलते थे जंहा आशिक़ अपनी बीवी की डिलेवरी के लिए आता था और माशूक़ा अपने शौहर के साथ अपनी ड्यू डेट पूछने। जो अटका रह जाता था वह सिर्फ एक अहसास था..... वही पहले पहल वाला।        

                 मैंने देखा और खूब गौर से देखा। गुलाब का वह फूल जिस नंन्हे पौधे में  लगा था वह बेचारा इसका वज़न भी नहीं बर्दाश्त कर पा रहा था. इतना ही बोझ बड़ी अम्मी पर  डाल , बेचारे बड़े अब्बू अपने दूधमुंहे बच्चे को छोड़ अल्लाह को प्यारे हो गए थे. सुनते हैं, बड़ी अम्मी उस उम्र में बेवा हुईं थीं जिस उम्र में आजकल लड़कियों  के निकाह भी नहीं होते।  सब ने खूब कहा तीन बच्चे छोडो और दूसरा निकाह कर लो. पर बड़ी अम्मी ने एक न सुनी। पढ़ लिख अपनी नौकरी कर , अपने बच्चो को पाल बड़ा कर दिया और आज दादी बनी बैठी हैं.  एक बार मैंने कहा बड़ी माँ! आपने दूसरा निकाह क्यों न किया, बोलीं " पहला तो पहला होता है" और ऐसे लाल हो गयीं जैसी आसपास ही कहीं बड़े अब्बू बैठे हों।  साल गुज़र गए इस गम से खानदान उबार नहीं पाया।  "दादी अम्माँ " उस ज़माने की बेहद बोल्ड लेडी  और बेहद दबंग भी,  वह भी इस गम से उबार नहीं पाईं थी. किसी फतवे को नहीं मानती थीं वह . (क़ब्रिस्तान  में औरतों  के जाने पर लगी पाबंदी को भी ) अक्सर हम  बच्चो की  अंगुली थाम , नदी के परले सिरे पर बने कब्रिस्तान  में  ले जाया करती और घंटो अपने बेटे की क़ब्र पर बैठा करती थी।  (एक गर्मी उन्होंने ही यह गुलाबी गुलाब बड़े अब्बू की क़ब्र पर लगाया था।)  पूछने पर कहतीं , " मेरा लाल, मेरी पहलौठी का था , उसी ने पहले पहल माँ बोला था मुझे।  पंद्रह  बरस की थी जब वह हुआ था , दुःख सुख सब में मुझसे लगा हुआ....... जाने कब बड़ा होगा उसका बेटा------  जाने कब उसकी नस्ल फलेगी.. ........ 

                  दादी अम्मा को गुज़रे अरसा हुआ. बड़े अब्बू के बड़े बेटे के घर रूमान हो गया। पर राज़ की बात बताऊँ........ हमारी नस्ल में  " राजा " नाम उसी को मिला जो घर का पहला बच्चा था यानि  दादी की सबसे पहली पोती, मेरी सबसे बड़ी बहिन ,  जो मेरे सर पर बैठ ऊंचे सुरों में गुनगुना  रही है , " तुम भी पहले पहल , हम भी पहले पहल ........."  
     

34 टिप्‍पणियां:

उम्मतें ने कहा…

पहले पहल, जब कुछ भी ना रहा हो उसके एन बाद :) आपको जब भी पढता हूं अच्छा लगता है उम्मीद करता हूं, इस पोस्ट के मूड जैसे हालात में मजे कर रही होंगी आप !

उम्मतें ने कहा…

बहरहाल आगे ये कहना है कि, इतना अच्छा लिखा है आपने, जल भुन कर राख हुआ जा रहा हूं

Astrologer Sidharth ने कहा…

नन्‍हे से प्‍यारे से पहले पहल आए गुलाब पर इतना बोझ डाल दिया, खुद गुलाब भी सोच सोचकर और लाल हुआ जाता होगा :)

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 23 जनवरी 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "कैंची, कतरन और कला: रविवासरीय ब्लॉग-बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Armaan... ने कहा…

Wah

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मूड बदल देती है आपकी कहानी ... बहुत खूब ...

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत खूब ! पहला-पहला न जाने क्यों जेहन में लंबे वक्त तक रहता है,आखिर पहला जो है.गुलाबी गुलाब के बहाने पहला-पहला बहुत कुछ कह गया.कुछ कहे-अनकहे जब भी याद आते हैं,इसी तरह गुदगुदा जाते हैं,उस पर तुर्रा ये कि वो पहला-पहला ही है.
इसी तरह लिखते रहिये.

Dilshad Jafri ने कहा…

कितना कुछ पुराना एक पल में आँखों के सामने से गुज़र गया :(

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

अच्छा ..रोचक ..

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

ये पहले पहल वाला हक़ सदा बना रहता है .... :)

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

oh kamal ka likha .. rumaniyat se hote huye mamta pr khatm huyi is lekhni ka jadu anokha hai shubhkamnaye :)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-01-2017) को "होने लगे बबाल" (चर्चा अंक-2584) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बढ़िया

lori ने कहा…

जी! एकदम से नॉस्टेल्जिक

lori ने कहा…

सच कहूं...आपका दुआओं वाला हाथ, हमेशा सिर पर रहे...आमीन :)

lori ने कहा…

सिद्धार्थ भाइजान! नन्हे से गुलाब की इतनी फिक्र!और एक हमारा पाव भर का दिल!!! उसका क्या!!! 

lori ने कहा…

सिद्धार्थ भाइजान! नन्हे से गुलाब की इतनी फिक्र!और एक हमारा पाव भर का दिल!!! उसका क्या!!! 

lori ने कहा…

शुक्रिया! साथ बना रहे....

lori ने कहा…

शुक्रिया! साथ बना रहे....

lori ने कहा…

इस वाह में “ आह” ज़्यादा सुनाई दे रही है....

lori ने कहा…

बहुत शुक्रिया जनाब! आपकी आमदो –रफ्त से यूं ही गुलज़ार रहें इस ब्लॉग की गलियां -आमीन

lori ने कहा…

शुक्रिया! साथ बना रहे....

lori ने कहा…

शुक्रिया! साथ बना रहे....

lori ने कहा…

:) :) शुक्रिया! साथ बना रहे....

lori ने कहा…

शुक्रिया! साथ बना रहे....

lori ने कहा…

gurudev!!! naman, शुक्रिया! साथ बना रहे....

lori ने कहा…

शुक्रिया! साथ बना रहे....

lori ने कहा…

:) :):)

Manish Kumar ने कहा…

वाह! बहुत खूब लिखा आपने... आनंद आ गया पढ़ कर।

lori ने कहा…

shuahkriya Manish ji! sath banaa rahe..... :)

अनूप शुक्ल ने कहा…

बहुत उम्दा लिखती हो ! बहुत बेहतरीन !

१. पहला पहला कितना गुदगुदाता सा लगता है , जैसे अभी अभी ही हो कर गुज़रा हो.

२.वह दौर ही ऐसा था , माकूल वक़्त का इतंज़ार करते करते माशूका और आशिक़ अस्पताल की सीढियो पर ही मिलते थे जंहा आशिक़ अपनी बीवी की डिलेवरी के लिए आता था और माशूक़ा अपने शौहर के साथ अपनी ड्यू डेट पूछने। जो अटका रह जाता था वह सिर्फ एक अहसास था..... वही पहले पहल वाला।

३. बड़ी अम्मी उस उम्र में बेवा हुईं थीं जिस उम्र में आजकल लड़कियों के निकाह भी नहीं होते।

४. मेरा लाल, मेरी पहलौठी का था , उसी ने पहले पहल माँ बोला था मुझे। पंद्रह बरस की थी जब वह हुआ था , दुःख सुख सब में मुझसे लगा हुआ....... जाने कब बड़ा होगा उसका बेटा------ जाने कब उसकी नस्ल फलेगी.. ........

बहुत खूब !

प्रशांत शर्मा ने कहा…

इस गीत को जब भी सुनते हैं तो स्मृतियों पर बड़ा जोर पड़ता है और गीता भवन की उस बिल्डिंग की सीढ़िया पर जाकर खड़े हो जाते हैं, जहां बेवजह गुनगुनाते हुए जा रहे थे। गीत का अर्थ, संदर्भ और व्याख्या तो बाद में समझ में आई। जिन भावनाओं को उद्गम स्थल मन भी समझ नहीं पता और भ्रम में रहता है, उन्हें स्पष्ट शब्दों में लिख देना बहुत बड़ी काबिलियत है। आप वाकई बहुत अच्छा लिखती है।

Loriali.ali@gmail.com ने कहा…

शुक्रिया, साथ बना रहे