बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए
मौसम के हाथ भीग के सफ्फ़ाक हो गए
बादल को क्या ख़बर है कि बारिश की चाह में
कैसे बुलंद-ओ -बाला शजर ख़ाक हो गए
जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए
लहरा रही है , बर्फ की चादर हठा के घास
सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गए
बस्ती में जितने आब गुज़ीदा थे, सब के सब
दरिया का रुख़ पलटते ही तैराक हो गए
सूरज दिमाग़ लोग भी अब्लाग़ -ए -फ़िक्र में
ज़ुल्फ़ें -शब-ए -फ़िराक़ के पैचाक हो गए
जब भी ग़रीब -ए -शहर से कुछ गुफ़्तगु हुई
लहजे हवा-ए-शाम के , नमनाक हो गए
- परवीन शाकिर
सफ़्फ़ाक़ -साफ़ , आब गुज़ीदा -पानी से डरने वाले , अब्लाग- ए -फ़िक्र - फिक्रमन्द , पैचाक - घेरे,
14 टिप्पणियां:
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल..
shukriya janab! :)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-06-2015) को "बेवकूफ खुद ही बैल हो जाते हैं" {चर्चा अंक-2006} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
गुज़ीदा
अब्लाग़
पैचाक
नमनाक
.....अर्थ लिख दें तो शायद अच्छी गजल पूरी समझ मे आ जाय।
सुन्दर
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
बहुत सुन्दर
जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए
बहुत ही बढ़िया ....
sr ji ! Vocab apke liye khas!!! :)
thnx :)
apke blog par aai thee, tipiya ya bhi hai.... shukriya
thnx :)
bahut shukriya !! :)
जुगनू को दिन के वक़्त परखने की ज़िद करें
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए ...
बहुत ही कमाल के शेर हैं सभी ... बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल ...
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