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बुधवार, 10 सितंबर 2014

नहीं है ........





तुझसे कोई गिला नहीं है 
क़िस्मत में मेरी सिला नहीं है 

बिछड़ के तो न जाने क्या हाल हो 
जो शख़्स  कभी मिला नहीं है 

जीने की तो आरज़ू ही कब थी 
मरने का भी हौंसला नहीं है

जो ज़ीस्त को मो'तबर  बना दे
ऐसा कोई सिलसिला नहीं है 

खुशबू का हिसाब हो चुका 
और फूल अभी खिला नहीं है

 सरशारी-ए - रहबरी में देखा 
पीछे मेरे काफला नहीं है 

एक ठेस पे दिल का फूट बहना
छूने में तो आबला नहीं है 
                           - परवीन शाकिर   

9 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

उम्दा ग़ज़ल।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

खुशबू का हिसाब हो चुका
और फूल अभी खिला नहीं है ..
बहुत खूब ... यही तो दस्तूर है दुनिया का ...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

खुशबू का हिसाब हो चुका
और फूल अभी खिला नहीं है
Waah.... Bahut Umda Gazal Padhwai...

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…


कल 12/सितंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

Himkar Shyam ने कहा…

परवीन शाकिर की इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए तहे-दिल से शुक्रिया

hem pandey(शकुनाखर) ने कहा…

बिछड़ के तो न जाने क्या हाल हो
जो शख़्स कभी मिला नहीं है

खुशबू का हिसाब हो चुका
और फूल अभी खिला नहीं है

बहुत सुन्दर !

Rohitas Ghorela ने कहा…

परवीन शाकिर जी की एक कमाल की गजल से परिचय करवाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

रंगरूट

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

छोटी बहर की बहुत उम्दा ग़ज़ल पोस्ट की है आपने परबीन शाकिर जी की।
--
आभार आपका।

dr.sunil k. "Zafar " ने कहा…

खुशबू का हिसाब हो चुका
और फूल अभी खिला नहीं है

क्या खूब कहा हैं.
ultimate.