गुलमोहर सी
दहकती तुम्हारी याद
मयूर पंखों सा हरियाता मौसम
सुरमई बादलों की मदमाती
अटखेलियाँ
और भरी जून की जिद्दी बारिश
अब बस भी करो
आना हो तो आओ
वरना सचमुच
मौसम के साथ भी बहुत
खुश हूँ मै!
- लोरी
3 टिप्पणियां:
वैसे तो बेहद खूबसूरत कह कर निकल ही जाने वाला था ! ...पर कुछ अटपटा सूझा है तो कहता चलूँ ! मुझे लगता है कि आपके लिखे में ये इशारा भी मौजूद है :)
ज़माना कितना बदल गया है ! बदलते मौसमों के साथ उसकी यादों के बतौर उसकी वर्चुअल मौजूदगी ! उसका सच में आना अब ज़रुरी नहीं रह गया है ! इस दुनिया ने वर्चुअलिटी की सोहबत में जीना सीख लिया है !
क्या आपने मेरी टिप्पणी डिलीट कर दी ?
अगर नहीं की हो तो स्पैम चेक कर लीजियेगा !
लिल्लाह अली जी!!!
आपने ऐसा कैसे सोंच लिया, मै तो आपकी टिप्पणी
का इंतज़ार करती हूँ, भला काहे डिलीट करुँगी! शायद ठीक से पोस्ट ना हुई हो
स्पं में भी कुछ नही"
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