आवारगी
शनिवार, 31 दिसंबर 2016
फ़िनिक्स
अंजाम से
आग़ाज़
कर
उठ कर ज़रा परवाज़ कर
रख दे
परे
मायूसियां
तू ज़िंदगी को साज़ कर
ख़ामोशियां सरगम पे हों
नाकामियां परचम पे हों
तो ज़ीस्त भी खिलती नही
और मौत भी मिलती नही
उठ! तू ख़ुद की ख़ाक से ही
‘
तामीर-ए-ख़ुद
’
जांबाज़
कर
सेहबा
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