उठो लाल अब आँखें खोलो
पानी लाई हूँ मुहं धोलो
बीती रात कमलदल फूले
उनके ऊपर भौंरे झूले
(एक लाइन भूल गयी)
बहने लगी हवा अति सुन्दर
नभ में न्यारी लाली छाई
धरती पर प्यारी छवि आयी।
पानी लाई हूँ मुहं धोलो
बीती रात कमलदल फूले
उनके ऊपर भौंरे झूले
(एक लाइन भूल गयी)
बहने लगी हवा अति सुन्दर
नभ में न्यारी लाली छाई
धरती पर प्यारी छवि आयी।
मेरे बचपन की धरोहर, मेरे सुहाने दिनों की याद, और "माणक बहिन जी " का पहला पहला मनोबल बढ़ने वाला कथन" छोरी! तेरे पप्पा से कहना, बहिन जी ने कहलवाया है तू पढ़ने में बड़ी अच्छी है, तुझे खूब पढाये!!!" मै तो उस समय बड़ी खुश हुई, पर घर आकर भूल गयी। शाम हुई दादी बाड़े में लिपी हुई ज़मीन पर पानी डाल जब नीम के नीचे आ धमकी मुझे कुछ याद आया; "दादी!" मै हौले से बोली। " हूँ" वह तज्बीह के दाने फेरते फेरते बेज़ारी से मुझे देखने लगीं. "सुनो! मै ना! पढ़ाई में बहुत अच्छी हूँ"
"आयी हाई! तुझे किसने कहा, अरे दिन भर, रस्सी टप्पा, लंगडी टांग!!!
देखो ज़रा!!! ये पढाई में अच्छी हैं, अलिफ़ का नाम भाला !!!!!!"
दादी आज तो मुझे इत्ती बुरी लगी कि बस!!!अब मंगाना मुझसे पान, कोई लाके दे दू मै? मैंने भी मन ही मन अहद कर लिया। उन्हें देखा भी नही, उनके चबूतरे से चिडिया सी उडी और मैदान में वोलिबोल खेलते पप्पा के पास आ गयी; "पप्पा!"
"हाँ बिट्टू!" कोई खास ध्यान नहीं दिया पप्पा ने। "कुछ तो नहीं!" पैर पटकते पटकते भाई के पास आ गयी; "ऐ भैया! आज ना...."
-" तू फस्ट गीयर में मत चला कर यार! जल्ली बोल!"
-कुछ नहीं जा! नहीं बताती।
-मत बता, भाग यहाँ से बिल्ली कहीं की!
चची,...तो मोंटू की पोटी धुला रही है, अप्पी को तो टाइम नहीं, गुड्डन बिट्टन भी काम में लगी है, कुरआन पढ़ाने वाली आपा तो जा भी चुकी हैं, अम्मा रोटी बनाते वक्त किसी की सुनती नहीं, दीनियात के हाफिज़ जी को बता के क्या होगा! कैसी सिसक सी पडी मै!
फिर शाम हुई, रात गयी और बात गयी।
एम् फिल, पी एचडी नौकरी और शादी।
"माँ! भोर पर कोई कविता लिख दो ना, मेडम ने मंगाई है"
-बेटे अब्बू से लिखवा लो, मुझे अभी बहुत से काम हैं।
"नहीं लिख सकती यूं कहो! काम की आड़ मत लो! (बच्चों के अब्बू का चिरपरिचित लहज़ा! मुझसे कोई काम करवाना हो तो ये ऐसे ही करते हैं)
मैंने बेलन एक तरफ रक्खा, कमर में पल्लू खोंसा, और बोली लिखो नन्हे!
"उठो लाल अब आँखे खोलो...."
कविता पूरी हुई, ये शरारत से मेरे पास आकर खड़े हुए और कहने लगे सुनो!
-क्या है! (मैंने आँखें तरेरी)
"तुम ना! पढाई में बहुत अच्छी रही होगी"।
"आयी हाई! तुझे किसने कहा, अरे दिन भर, रस्सी टप्पा, लंगडी टांग!!!
देखो ज़रा!!! ये पढाई में अच्छी हैं, अलिफ़ का नाम भाला !!!!!!"
दादी आज तो मुझे इत्ती बुरी लगी कि बस!!!अब मंगाना मुझसे पान, कोई लाके दे दू मै? मैंने भी मन ही मन अहद कर लिया। उन्हें देखा भी नही, उनके चबूतरे से चिडिया सी उडी और मैदान में वोलिबोल खेलते पप्पा के पास आ गयी; "पप्पा!"
"हाँ बिट्टू!" कोई खास ध्यान नहीं दिया पप्पा ने। "कुछ तो नहीं!" पैर पटकते पटकते भाई के पास आ गयी; "ऐ भैया! आज ना...."
-" तू फस्ट गीयर में मत चला कर यार! जल्ली बोल!"
-कुछ नहीं जा! नहीं बताती।
-मत बता, भाग यहाँ से बिल्ली कहीं की!
चची,...तो मोंटू की पोटी धुला रही है, अप्पी को तो टाइम नहीं, गुड्डन बिट्टन भी काम में लगी है, कुरआन पढ़ाने वाली आपा तो जा भी चुकी हैं, अम्मा रोटी बनाते वक्त किसी की सुनती नहीं, दीनियात के हाफिज़ जी को बता के क्या होगा! कैसी सिसक सी पडी मै!
फिर शाम हुई, रात गयी और बात गयी।
एम् फिल, पी एचडी नौकरी और शादी।
"माँ! भोर पर कोई कविता लिख दो ना, मेडम ने मंगाई है"
-बेटे अब्बू से लिखवा लो, मुझे अभी बहुत से काम हैं।
"नहीं लिख सकती यूं कहो! काम की आड़ मत लो! (बच्चों के अब्बू का चिरपरिचित लहज़ा! मुझसे कोई काम करवाना हो तो ये ऐसे ही करते हैं)
मैंने बेलन एक तरफ रक्खा, कमर में पल्लू खोंसा, और बोली लिखो नन्हे!
"उठो लाल अब आँखे खोलो...."
कविता पूरी हुई, ये शरारत से मेरे पास आकर खड़े हुए और कहने लगे सुनो!
-क्या है! (मैंने आँखें तरेरी)
"तुम ना! पढाई में बहुत अच्छी रही होगी"।