उन प्यारे दिनों के नाम, जब माँ रोज़ ही सोने के पहले यह सब सुना करती थी :
हुए बहुत दिन बुढ़िया एक
चलती थी लाठी को टेक
उसके पास बहुत था माल
जाना था उसको ससुराल
मगर राह में चीते शेर
लेते थे राही को घेर
बुढ़िया ने सोंची तदबीर
जिससे चमक उठी तक़दीर
मटका एक मंगाया मोल
लंबा लंबा गोल मटोल
उसमे बैठी बुढ़िया आप
वह ससुराल चली चुपचाप
बुढ़िया गाती जाती यूँ
चल रे मटके टम्मक टूँ
- बताइये कौन है इस बालगीत का रचनाकार
37 टिप्पणियां:
बड़ा प्यारा सा बाल गीत .... रचनाकार की जानकारी तो नहीं , पर जानना चाहूंगी
यह तो बहुत ही प्रसिद्ध बाल कविता है।
बचपन में बालमुस्कान में पढ़ी थी।
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सुन्दर प्रस्तुति।
पुरानी यादें ताज़ा करवाने के लिए आपका शुक्रिया।
हा हा मज़ेदार !
मजेदार।
Majedar bachpan ko phir se jiya.
Majedar bachpan ko phir se jiya.
बहुत ही अच्छी कविता हे जो पुराने दिनों की याद दिलाती हे जब हम सरकारी स्कूल में गाव में पढ़ने जाते थे पढ़कर ऐसा लगता हे मानो अभी भी उसी स्कूल में उन्ही सर से पढाई कर रहे हे
सही है आनंद जी। सही मानो में पाठ्यक्रम का पूरा आनंद उठाया था हमने
AAP HI BATA DIJIYE NA KON HE ISKE RACHAITA . PLEACE
Tija jain
Bahut hi prabhavshali poem aaj tak yaad hai..
Kya baat....
Gajab ki kavita bachpan yaad aaya
हम ने भी पढी हे बडा मजेदार कविता।
बचपन में पड़ी थी
Yah Kavita kisne likhi h
अभी आपको इसकी पूरी कहानी पता नहीं, बड़ी मजेदार है
Purani yade taja ho gyi class 3 ka Hindi lesson 3
बचपन की यादें , में ऋणि हु मेरे शासकीय विद्यालय के शिक्ष को का जिन्होंने मुझे प्राइवेट स्कूल की फीस भरने योग्य बनाया ,
School time me meri book ka ek lesson tha bhut hi pyari kavita hai yah
Ye Kavita maine 1993 me 2nd Std me Apni Hindi ki Book me Padhi thi.. 😌😊
Class 3 ki nhi Class 2 ka Hindi lesson 3 tha.. 😊
Class 2 me padha tha govt school me
bahut hi accha
https://youtu.be/qT874_COKvA
Ye kavita padhkar dali hai youtube par
Aj bhi moukhik yad hai
prakash raibahut hi sundar kavita hai maine bhi school me padha tha.
माखनलाल चतुर्वेदी
आप सभी ने बालपन में इस तुकांत को सुन या पढ़ कर जरुर प्रभावित हुए हैं पर हमें इस्लामी साजिश लगती है।
ऋचा जेन जिंदल इस कविता की रचयिता हैं।
पूरा बाल गीत प्रस्तुत कीजिए यह आधा बालगीत है
मैंने ये कविता मेरी दादी से सुनी थी मुझे वो याद आती है इन कविताओं में
अतिसुन्दर
Yeh kavita me bachpan ki ek bohot sundar yaar hai ..
मेरी बड़ी मम्मी थीं, हम गांव जाते तो वे मुझे यह कविता सुनाती थी, हर रोज़ हम आँगन में दरी बिछा लेते,खुले आसमान में तारे होते उन्हें देखते-देखते मुझे वे बहुत सारी पहेलियाँ देती और पूछती अब क्या सुनना है? मै हमेशा उनसे यही कविता सुनाने कहती, मेरी माँ मुझ पर ध्यान नहीं दे पाती थीं लेकिन मेरी बड़ी मम्मी ने मुझे पाला, आज माँ तो है लेकिन वो भी माँ की भुमिका नहीं निभाना चाहती और मेरी बड़ी-मम्मी अब इस दुनिया में नहीं तो मेरे लिए ऐसे में "माँ" शब्द के कोई मायने नहीं, आज बस धन्यवाद करना चाहती हूँ की आपने इस कविता को प्रकाशित किया, उनकी याद ना आए एसा प्रयास करती हूँ, क्योंकि वह बेहद पीड़ादायक होता है, पर आज जब याद आई तो कविता को ढूंढने लगी, यही खुशनसीबी है मेरी की कुछ जो उन्होंने मुझे दिया वो भी मेरे बचपन में वो आज भी यादों में सही मेरे पास है। उनके अंतिम समय में तो मेरी बात भी नहीं हो पाई उनसे, पर कुछ बातें याद हैं तो शायद इसका अर्थ है वो भी मेरे साथ हैं, एसा सोच कर संतुष्टि कर रहीं हूँ। उनसे बेहद प्यार करती हूँ मैं। धन्यवाद उनको मेरी माँ होने का दर्जा केवल उनका है, अन्य किसी का उस पर अधिकार नहीं।
ग्रेट सर
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