अपनी रुस्वाई तेरे नाम का चर्चा देखूँ
एक ज़रा शेर कहूँ , और मैं क्या क्या देखूँ
नींद आ जाये तो क्या महफिलें बरपा देखूँ
आँख खुल जाए तो तन्हाई का सहारा देखूँ
शाम भी हो गयी धुंधला गयी आँखें मेरी
भूलने वाले, कब तक मैँ तेरा रास्ता देखूँ
सब ज़िदें उसकी मैं पूरी करूँ, हर बात सुनूँ
एक बच्चे की तरह से उसे हँसता देखूं
मुझ पे छा जाये वो बरसात की खुशबू की तरह
अंग अंग अपना उसी रुत में मेहकता देखूं
तू मेरी तरह यक्ताँ है मगर मेरे हबीब !
जी में आता है कोई और भी तुझसा देखूं
मैंने जिस लम्हे को पूजा है उसे बस एक बार
ख्वाब बन कर तेरी आँखों में उतरता देखूँ
तू मेरा कुछ भी नहीं लगता मगर ऐ जाने हयात !
जाने क्यों तेरे लिए दिल को धड़कता देखूँ
टूट जाएँ कि पिघल जाएँ मेरे कच्चे घड़े
तुझ को देखूँ के ये आग का दरिया देखूँ
- परवीन शाकिर