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बुधवार, 9 मार्च 2011


आई ना हाथ आज तक खैरात प्यार की
मै कासा-ए-ख़ुलूस लिए दर-ब-दर गया

2 टिप्‍पणियां:

उम्मतें ने कहा…

इस खूबसूरत और मानीखेज शेर पर प्रतिक्रियायें नहीं देख के हैरान सा हूं ! मुमकिन है आज के दौर में प्यार के सोते सूख चले हों तो फिर दर-ब-दर जाने से क्या हासिल !

lori ने कहा…

सच कहूं अली जी!
मुझे और सब का तो ठीक है, मगर आपकी टिप्पणी का
बेसब्री से इंतज़ार था.... और आपका कमेन्ट, मेरे ब्लॉग पर!!!!
इससे बड़ा आशीर्वाद और सौभाग्य मेरे लिए कुछ नहीं हो सकता!!!
शुक्रिया!!!