भूक की कडवाहट से सर्द कसैले होंठ
खून उगलते, सूखे, चटके -पीले होंठ
टूटी चूड़ी , ठंडी लड़की, बागी उम्र
सब्ज़ बदन, पथराई आँखे, नीले होंठ
सूना आँगन, तन्हाँ औरत, लम्बी उम्र
खाली आँखे, भीगा आँचल, गीले होंठ
कच्चे, कच्चे लफ़्ज़ों का ये नीला ज़हर
छू जाये तो मूरख तू भी छूले होंठ
ज़हर ही मांगे, अमृत रस को मूह ना लगाएं
बागी, जिद्दी, वहशी और हटीले होंठ
ऐसी बंजर बातें, ऐसे कड़वे बोल
ऐसे सुन्दर कोमल, सुर्ख रसीले होंट
इतना बोलोगी तो क्या सोंचेगे लोग ?
रीत यहाँ की ये है लड़की सीले होंट
- इशरत आफरीन .
10 टिप्पणियां:
इतना बोलोगी तो क्या सोंचेगे लोग ?
रीत यहाँ की ये है लड़की सीले होंट
-अद्भुत!!!
बहुत आभार इसे यहाँ प्रस्तुत करने का...
बहुत ही अलग अंदाज़-ए-बयां .............उम्दा ग़ज़ल!
hmmm nic....
सुन्दर गजल
टूटी चूड़ी, ठंडी लड़की, बागी उम्र
सब्ज़ बदन, पथराई आँखें, नीले होंठ'
गज़ब का शेर ...उम्दा ग़ज़ल
सभी शेर एक से बढ़कर एक
@ लोरी अली साहिबा ,
पोस्ट के साथ इतनी खूबसूरत फोटो लगाईयेगा तो टिप्पणी के बहक जाने का खतरा है :)
@ पोस्ट
खास हालात पर लिखी गई इस रचना के मायने खोजने की कोशिश कर हूं ! स्त्रियों के मुताल्लिक आपके मंतव्य / इंटेंशन / इरादों से सौ फीसदी इत्तिफाक पर ...पढते वक़्त कुछ कंट्राडिक्शंस और कुछ टायपिंग की गलतियां ध्यान भंग करती हैं ! मुकम्मल लय में पढ़ने और झटके खाकर पढ़ने में रचना अलग सा असर पैदा करती है !
ललित जी, साहिल जी , सुरेन जी, समीर लाल जी, सुहैल जी !!!!
आप सभी का शुक्रिया!
अली जी!! बहुत शुक्रिया, महरबानी!
आपके अमूल्य सुझावों कए लिए, आपकी मोहब्बत के लिए
- इशरत आफरीन .साहब की है ये नज्म?
सच कहूँ? मुझे मात्र अंतिम दो पंक्तियाँ समझ में आई.....फिर कैसे कह दूँ कि 'दिल को छू गई तुम्हारी रचना'
यूँ आखिरी शे'र ने सब लूट लिया वाहवाही भी और ....जो तुम्हे दे सकती हूँ...प्यार.
अली सा की बातों पर ध्यान तो अभी भी नहीं दिया गया!:)
बे-ध्यानी भी एक किस्म का ध्यान ही होती है देवेन्द्र जी :)
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