रुचिका भी खेल सकती है मुझे पता है, वह खेल रही है मिझे यह भी पता है बस शर्म आती है तो इस बात पर कि यह बिलकुल एकता कपूर के नाटक जैसा हो रहा है, प्रीतिश!!! कई बार शब्द सच नहीं होते! (मैंने तो आँखों पर भरोसा किया था, तब भी हारी हूँ ) मै हर बार तुम्हारे लिए बेहतर कहते कहते रह जाती हूँ क्योंकि जानती हूँ, "रुचिका बर्दाश्त नहीं कर पाएगी " और अगर इसे तुम मेरी कमजोरी या उदगार समझ कर रुचिका के ज़रिये, स्पीकर ओन कर के सुन रहे हो तो , मै मानती हूँ कि यह तुम्हारी कमजोरी है! हाँ रुचिका से किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध है तो उसे निभालो, "वक्त खुद अपने परिभाषाएं, और ज़रूरतें तय कर लेता है!
ज़िन्दगी भागती गाडी की खिड़की से धुन्द्लाये मंज़रों जैसी होती है, कुछ भी ज़हन के पल्लों पर ज्यादा देर नहीं टिकता! इसलिए मेरे दिल की परवाह किये बिना एक सही फैसला जल्दी ले लो, पर रब के लिए किसी से खेलो मत!!! क्योंकि खेलने वाले से ज़िन्दगी खेल जाती है, मै जहां रहूँगी, तुम्हारे लिए दुआगो हूँगी, क्योंकि प्यार तो मैंने तुमसे किया है, चाहे अनजाने ही!!! बस जहां रहो खुश रहो!!! रब तुम्हे दोस्तों और दुश्मनों के बीच का फर्क जानने की तहजीब अता करे!
- आमीन!!!
लोरी
4 टिप्पणियां:
आस पास ही घट रहा हो गोया सब कुछ ...रिश्तों पे आन किये हुए मोबाइल की आफत कहर सी ! अगर ये कहानी है तो बेहतर और अगर सच...तो बेहतरीन लिखा है आपने !
bahut saleeke se likhi hai aapne ..
sundar kahani.
भावनाओं का सैलाब जैसे बहता जा रहा हो ... एक सांस में पढ़ गया इसे ... बहुत गहरा, दिल में उतर जाने वाला लिखा है ..
अली जी, झंझट साहब और दिगंबर जी!!! बहुत शुक्रिया !!!!
एक टिप्पणी भेजें