आवारगी
रविवार, 19 दिसंबर 2010
टूट जाए के पिघल जाए मेरे कच्चे घडे
तुझको देखू के ये आग क दरिया देखू
परवीन शाकिर
गुरुवार, 25 नवंबर 2010
तू तो मत कह हमें बुरा दुनिया
तूने ढाला है और ढले हैं हम
क्या हैं, कब तक हैं, किसकी खातिर है,
बड़े संजीदा मस'अलें हैं हम
रविवार, 14 नवंबर 2010
काश! वह् रोज़े-हशर भी आए!
तू!
मेरे हमराह खडा हो
सारी दुनिया पत्थर लेकर
जब् मुझको संगसार करे
तू अपनी बाहो मे छूपा कर
तब् भी मुझ् से प्यार करे
शनिवार, 30 अक्टूबर 2010
प्यार तुम्हारा शबनम बनकर डाली-डाली छिटका है
प्यार तुम्हारा रेशम बनकर मेरे मन पर अटका है
किसका ये उजियारा है जो रात को दिन कर देता है
प्यार तुम्हारा जुगनू बनकर मेरे आँगन उतरा है
अक्टूबर की गर्मी जैसे मेरे तन्हा जीवन में
प्यार तुम्हारा गुलमोहरों-सी ठ
ंड
ी छाया देता है
क्या है ऐसा यूँ ही जो मेरे मन को महकाता है
प्यार तुम्हारा खुशबू बन कर मेरी रूह में उतरा है
मेरे सन्नाटे को जिसने पल दो पल में तोड़ दिया
प्यार तुम्हारा रागिनी बन कर इस जीवन में बिखरा है।
मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010
सिर्फ तुम.....!!!!!
तुम्हारी
साँवली मुस्कराहट
और ये पगला सलोनापन!
कुछ न जानने की चाह
और कुछ भी न जान पाने की बेबसी
ये उलझी-उलझी अलकें
और सुलझी-सुलझी आँखे
कुछ न कहना
और सारे वादे कर लेना
काश!!!
तुम जान पाते
कि न चाह कर भी
मैंने सिर्फ
तुम्हे ही चाहा है
मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010
अम्मा वक्त निकालो न!
याद है
तुमने कहा था
आएँगे पीले फूल
मेरे लगाए पौधों में
तुम मुझे फिर मिलोगी
देखो
फूल तो आ गए हैं
पर तुम तो नहीं आई
जानती हूँ
पनियाएंगी तुम्हारी आँखें
इस ही गमले के पास
एक दिन जब
जा चुकी होगी
तुम्हारी बिटिया
इस आँगन को पराया कर
तुम पनीली आँखों से दर्द कहोगी
वह पनीली आँखों से दर्द पढेगी
बस....इतने रिश्ते रह जाएँगे
क्यूंकि तब तक
वह भी दे चुकी होगी
अपनी बिटिया को
यही पीले फूलो वाले बीज
बुधवार, 6 अक्टूबर 2010
"एक ख़त हमको मिला है आसुओं के गाँव से
दर्द अब चलने लगा है , नन्हे-नन्हे पाँव से ....."
-परवीन शाकिर
रविवार, 3 अक्टूबर 2010
"वो एक लम्हा कि मेरे बच्चे ने माँ कहा मुझको
मै एक शाख से कितना घना दरख्त हुई !!!!!!! "
-परवीन शाकिर
शनिवार, 2 अक्टूबर 2010
बंद कर लो बयाज़ों को
अभी बहुत लंबा चलना है
फिर हिसाब कैसा!
कि वक्त की रहगुज़र में
कितने ही पडाव हैं
जहां सिर्फ दुःख ही हैं
जो तुम्हारा रास्ता देख रहे हैं
- लोरी
जब तुम पास होते हो
मेरे सारे जज़्बात अनाम रहतें हैं
और जब दूर चले जाते हो
तो तन्हाई
मेरे सारे जज्बों को
उनवान दे बैठती है
ये मोहब्बत की इन्तेहाँ नहीं
तो और क्या है
- लोरी
शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010
जब से जतलाया है तुमने कि
नहीं समझती तुम्हे
मेरी लिखी
एक भी कविता
सच मानो!!!
तुम मुझे
पहले से ज्यादा
अच्छे लगने लगे हो
शुक्रवार, 24 सितंबर 2010
चाँद किसी का हो नहीं सकता
चाँद किसी का होता है
चाँद की खातिर जिद नहीं करते
ऐ मेरे अच्छे इंशा चाँद!!!!
-इब्ने इन्शां
मंगलवार, 14 सितंबर 2010
ये क्या है मोहब्बत में तो एसा नहीं होता
मै तुझसे जुदा होके भी तनहा नहीं होता
इस मोड़ से आगे भी कोई मोड़ है वरना
यूँ मेरे लिए तू कभी ठहरा नहीं होता
या इतनी न तब्दील हुई होती ये दुनिया
या मैंने इसे ख्वाब में देखा नहीं होता
मंगलवार, 31 अगस्त 2010
अब मेरे दिल पे कोइ तीर नही
घर की दीवार पे तस्वीर नही
आन्ख
खुलते
ही मिलेङ्गे आन्सु
ओर कुछः ख्वाब् की ताबीर नही
वक्त् की कैद भी बाकी न रही
अब तो लमहो की भी ज़न्जीर् नही
कोइ आ जाए तो बन जाता है
वरना दिल की तो कोइ
तामीर नही
मोहम्मद अलवी
सोमवार, 16 अगस्त 2010
आवारगी
फिरते हैं कब से दर- ब- दर
अब इस नगर अब उस नगर
जाएं तो अब जाएं किधर
मै
और मेरी आवारगी
मै
और मेरी आवारगी
यह ब्लॉग और इसकी रचनात्मकता
जावेद अख्तर साहब को नज़र.....जिनके
इस नगमे
ने मुझे ब्लॉग लिखने को प्रेरित किया
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