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मंगलवार, 31 अगस्त 2010



अब मेरे दिल पे कोइ तीर नही
घर की दीवार पे तस्वीर नही

आन्ख खुलते ही मिलेङ्गे आन्सु
ओर कुछः ख्वाब् की ताबीर नही

वक्त् की कैद भी बाकी न रही
अब तो लमहो की भी ज़न्जीर् नही

कोइ आ जाए तो बन जाता है
वरना दिल की तो कोइ तामीर नही
मोहम्मद अलवी



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