इन मस'अलो की उम्र दराज़ हो कि ये संजीदा तो हैं. रहा दुनिया का.. वो बनाए लाख बुरा हम क्यों बने क्यों कोई भौंह हमारी ओर ही तने हम इस गुलसितां के वो गुल है नाज़ जिस पर ये जहा करें हा हा हा पगली बेटी! लिखती है...पर दिल खोल कर. कहीं कोई दुराव छुपाव नही.जियो.
4 टिप्पणियां:
अच्छी पंक्तियों के लिए दिली मुबारकबाद
बेहद फिलासोफिकल ! शुक्रिया !
इन मस'अलो की उम्र दराज़ हो
कि ये संजीदा तो हैं.
रहा दुनिया का..
वो बनाए लाख बुरा हम क्यों बने
क्यों कोई भौंह हमारी ओर ही तने
हम इस गुलसितां के वो गुल है
नाज़ जिस पर ये जहा करें
हा हा हा
पगली बेटी! लिखती है...पर दिल खोल कर. कहीं कोई दुराव छुपाव नही.जियो.
बहुत खूब .. पहले दुनिया अपने अनुसार ढलती है फिर कहती है बदल गए ...
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