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गुरुवार, 25 नवंबर 2010

तू तो मत कह हमें बुरा दुनिया
तूने ढाला है और ढले हैं हम
क्या हैं, कब तक हैं, किसकी खातिर है,
बड़े संजीदा मस'अलें हैं हम

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

अच्छी पंक्तियों के लिए दिली मुबारकबाद

उम्मतें ने कहा…

बेहद फिलासोफिकल ! शुक्रिया !

बेनामी ने कहा…

इन मस'अलो की उम्र दराज़ हो
कि ये संजीदा तो हैं.
रहा दुनिया का..
वो बनाए लाख बुरा हम क्यों बने
क्यों कोई भौंह हमारी ओर ही तने
हम इस गुलसितां के वो गुल है
नाज़ जिस पर ये जहा करें
हा हा हा
पगली बेटी! लिखती है...पर दिल खोल कर. कहीं कोई दुराव छुपाव नही.जियो.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब .. पहले दुनिया अपने अनुसार ढलती है फिर कहती है बदल गए ...