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शनिवार, 21 जनवरी 2012

तुम मुझको गुडिया कहते हो



तुम मुझको गुडिया कहते हो
सच कहते हो
खेलने वाले सब हाथों को
गुडिया ही तो लगती हूँ मै
जो पहना दो, मुझ पे सजेगा
मेरा कोई रंग नहीं
जिस बच्चे के हाथ थमा दो
मेरी किसी से जंग नहीं
कूक भरो
बीनाई लेलो
या मेरी गोयाईं ले ले लो
मांग भरो
सिदूर सजाओ
प्यार करो आँखों में बसाओ
और जब दिल भर जाये तो
दिल से उठा कर ताक़ पर रख दो
तुम मुझको गुडिया कहते हो
सच ही तो कहते हो
- परवीन शाकिर.

1 टिप्पणी:

उम्मतें ने कहा…

बेहद मानीखेज़ !