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मंगलवार, 23 जुलाई 2013

        


ऐ दुश्मने-जाँ! तू दुश्मन है पर जान से प्यारा लगता है 
तुझे चाह के हम तो हैराँ हैं, तू कौन हमारा लगता है 

बादल, मौसम, रंग, परिन्दे, खुशबू, तितली, फूल हवा 
रात की रानी सूरत, मौसम का इशारा लगता है 

तू पास रहे तो सब कुछ है, तू साथ नहीं तो कुछ भी नहीं 
तन्हाई में डूबा डूबा शहर ये सारा लगता है 

तू रौनक है मेरे जज़्बों की, तू धड़कन है मेरे नगमों की 
तुम जब से मिले हो जाने- सुख़न हर गीत तुम्हारा लगता है 

तुम चल न सकोगे साथ मेरे, इस बात से मै कब ग़ाफ़िल हूँ
पर साथ तुम्हारे ऐ हमदम! ये रास्ता प्यारा लगता है 

                                                      -सहबा  जाफ़री

गुरुवार, 11 जुलाई 2013

मलाला के लिये .....



 

सालगिरह मुबारक 

                                         तुमने ख्वाब देखे                                            
फूलों  के  नहीं 
किताबों के
 तुमने लफ्ज़ छुए 
होंठों के नहीं 
महराबों के 
पथरीले रस्तों से
काँटों पे चलती 
अनदेखी आग 
जो तूर पे' जलतीं 
तुम जा पहुँची  उस तक 
और  कलामे-इलाही के बाद 
हक़ का पैगाम लेकर लौटती 
तुम  हौंसलों का पयम्बर थीं
लोरी  



तूर - एक पहाड़ जहां  मूसा नामक पैगम्बर को ईश -प्राप्ति हुई  थी 

बुधवार, 10 जुलाई 2013

क्यों



लडकियाँ माँओं  जैसे मुक़द्दर क्यों  रखती हैं
तन सहरा और आँख समंदर क्यों रखती हैं 

औरतें अपने दुःख की विरासत किसको देंगी
संदूकों में बंद ये ज़ेवर  क्यों रखती हैं 

वो जो रहीं हैं  खाली पेट और नंगे सर 
बचा बचा कर सर की चादर क्यों रखती हैं 

सुबह विसाल की किरणे हमसे पूछ रही हैं 
रात अपने हाथों में खंजर क्यों रखती है

                                   
   

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

एक मन्ज़र


कच्चा सा एक मकां कहीं आबादियों से दूर
 छोटा सा एक हुजरा फराज़े मकान पर 
सब्ज़े से झांकती हुई खपरैल वाली छत 
दीवारे चोब पर कोई मौसम की सब्ज़ बेल
 उतारी हुई पहाड़ पर बरसात की वो रात 
कमरे में लालटेन की हल्की सी रोशनी 
वादी में घूमता हुआ एक चश्म -ए -शरीर 
खिड़की को चूमता हुआ बारिश का जलतरंग 
साँसों में गूंजता हुआ एक अनकही का भेद 
                                                         -परवीन शाकिर 

सोमवार, 17 जून 2013

सितारों से आगे जहाँ .....



सितारों से आगे जहाँ  और  भी हैं 
अभी इश्क़ के इम्तेहां और भी हैं 

तही ज़िन्दगी से नहीं ये फज़ाएँ  
यहाँ सैकड़ों  कारवां और भी हैं 

क़ना'अत न कर आलमे रंगों बू पर 
चमन और भी आशियाँ और भी हैं 

अगर खो गया एक नशेमन तो क्या गम
मुकामात- ए -आहो-फुगाँ और भी हैं 

तू ताईर है परवाज़ है काम तेरा 
 तिरे सामने आसमां  और भी हैं 

इसी रोज़ ओ शब् में उलझ कर न रह जा
कि तेरे ज़मान ओ मकां  और भी हैं 

गए दिन कि तन्हाँ था मै  अंजुमन में 
यहाँ अब मेरे राज़दां और भी हैं 

                                                             -अल्लामा मोहम्मद इक़बाल    

ताईर - पंछी , तही-ख़ाली , क़ना 'अत - संतुष्टि , मुकामात-इ-आहो-फुगाँ -रोने और आह भरने की जगह, ज़मान  ओ मकां -वक़्त और जगह , 

शनिवार, 8 जून 2013

अबोर्शन


  सुबह सुबह के उनींदे अस्पताल के गलियारे में उसकी सिसकियाँ गूँज रही थी .  वह सुबक रही थी , अकेली नहीं थी शायद साथ वाली स्त्री  उसकी माँ थी। अस्पताल के रिसेप्शन पर अबोर्शन के लिए  फॉर्म भर पति के साइन की गुहार हुई तो पता चला कि  इस रिश्ते का अबोर्शन बच्चे  के अबोर्शन के ठीक दो दिन पूर्व हुआ है. 

अभी एक ज़ख़्म भरा नहीं और कुछ शारीरिक  समस्याओं के चलते दूसरा ज़ख़्म .

चेहरा पीला, आँखे  उदास और लिबास में हज़ारों सलवटें; लगता था जैसे कुछ भी ठीक है ही नहीं . 
तभी नर्स आकर उसे ऑपरेशन थियेटर ले जाने की तय्यारी करने लगी . बाएं हाथ में  बेहोशी की दवा इंजेक्ट करते  डॉक्टर  सा'ब उसके बहते आंसुओं पर उसे दिलासा दे रहे थे, "कुछ नहीं होगा बेटी!  मेडिकल साइन्स  ने बड़ी तरक्की कर ली है, तुझे पता भी नहीं चलेगा, बस दो मिनट में सब हो जाएगा, कोई दर्द नहीं , बस सारे दर्द ख़तम!" 
 "मालम है बड़ी तरक्की  कर ली तुम्हारे साइंस ने, सरीर के सारे घाव भर देता है डाक'साब! पर दो महीने से माँ बन कर जीती उसकी आत्मा, और  पूरे माँ बन चुके उसके मन के दरद का अबोर्सन भी कर  देता तो ठीक होता....." किसी काम से ओ. टी . में आयी काम वाली बाई बडबडा  रही थी .   

बुधवार, 8 मई 2013

माँ


लब -ओ -लहजा  हो कैसा भी 
आहट  बनावट कुछ भी हो 
दिल है तुम्हारा  एक सा 
सूरत सजावट कुछ भी हो 

तुम  चीन में हो या चाँद पर 
दिल तो तुम्हारा घर में है 
चिड़िया हो जैसे दूर पर 
अटका तो दिल शजर में है 

जब तक हो तुम  हर आस है 
दो जहाँ की खुशियाँ पास है 
तेरी दो आँखों में मै  हूँ
ये ही सबसे ख़ास है 

सदियों से बदले दौर ने 
हर एक को बदला यहां 
तू न बदली माँ मगर 
हर रोज़ बदला ये जहाँ 

तू है तो दिन है रात है 
तू है तो हर इक बात है 
तू है तो घर भी घर है माँ 
घर के मकीं भी साथ हैं 

अल्लाह करे साया तेरा 
यूँ  ही मेरे सर पर रहे 
तेरी दुआएँ  साथ हो 
जब जब भी हम भँवर  में रहे 
                                    -आमीन 
                                       लोरी