आवारगी
गुरुवार, 11 अप्रैल 2013
बाग़ -ए -बहिश्त से मुझे हुक्म-ए -सफ़र दिया था क्योँ
कार-ए -जहाँ दराज़ हैं ,अब मेरा इंतज़ार कर
-अल्लामा इक़बाल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें