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शनिवार, 30 अक्तूबर 2010





प्यार तुम्हारा शबनम बनकर डाली-डाली छिटका है
प्यार तुम्हारा रेशम बनकर मेरे मन पर अटका है

किसका ये उजियारा है जो रात को दिन कर देता है
प्यार तुम्हारा जुगनू बनकर मेरे आँगन उतरा है

अक्टूबर की गर्मी जैसे मेरे तन्हा जीवन में
प्यार तुम्हारा गुलमोहरों-सी ठंडी छाया देता है

क्या है ऐसा यूँ ही जो मेरे मन को महकाता है
प्यार तुम्हारा खुशबू बन कर मेरी रूह में उतरा है

मेरे सन्नाटे को जिसने पल दो पल में तोड़ दिया
प्यार तुम्हारा रागिनी बन कर इस जीवन में बिखरा है।


5 टिप्‍पणियां:

उम्मतें ने कहा…

यूं तो सब अच्छा है पर...'अक्टूबर की गर्मी और गुलमोहर की छांह' वाला ख्याल नया सा लगा इसलिए ज्यादा पसंद आया !



[ मुनासिब समझें तो वर्ड वेरिफिकेशन हटा दीजिएगा टिप्पणी करने वालों की तकलीफ कम हो जायेगी ]

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

BHAV ACHCHHE HAIN
PINGAL KI KASAUTI PAR CHADHAKAR RACHNA UTAREN TO KAMIYAN SWATAH DOOR HO JAYENGI

अशोक कुमार मिश्र ने कहा…

मेरे सन्नाटे को जिसने पल दो पल में तोड़ दिया
प्यार तुम्हारा रागिनी बन कर इस जीवन में बिखरा है।


bahut sundar rachna hai aapki .....
badhai aur dhanyavaad .....
is silsile ko jari rakhiye.....

अशोक कुमार मिश्र ने कहा…

http://nithallekimazlis.blogspot.com/


krapya mazlis me aane ka bhi kasht karen.....
dhanyavaad ....

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

lori ali ji
ख़ूबसूरत रचना के लिए मुबारकबाद !

इन दो शे'रों ने मन में घर कर लिया …
क्या है ऐसा यूं ही जो मेरे मन को महकाता है
प्यार तुम्हारा खुशबू बन कर मेरी रूह में उतरा है

मेरे सन्नाटे को जिसने पल दो पल में तोड़ दिया
प्यार तुम्हारा रागिनी बन कर इस जीवन में बिखरा है

बहुत बहुत बधाई !

शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार