रहने दो , छोडो भी , जाने दो यार
" यह हमारी ज़िन्दगी के साझे एक साल के लिए. " नितिन उठे और एक सुंदर गुलाब की हल्की गुलाबी कली उसकी तरफ बढ़ाई। उसके दाहिने हाथ में पर्स और बाएं हाथ में टिफ़िन बैग था। उसने मुस्कुरा कर अपना सिर उसके सामने कर दिया। नितिन मुस्काये और ताज़ा फूल सारा के बालों में अटका दिया और सारा लम्बे लम्बे डग भरती ऑफिस के लिए निकल ली। ऑटो रिक्शॉ मिलते ही वह थक कर ऐसे सुस्ताई जैसे मैराथन जीत ली. पंच कॉर्ड की याद आते ही उसका दिल धड़कने लगा. " हे राम !कहीं ऐसा न हो कि घर पर छूट गया हो !" उसने धड़कते दिल से पर्स में हाथ डाला, एक नीले स्कार्फ में अटका हाथ जैसे यादों में ही अटक कर रह गया। " तुम्हे पता है आज हमने इक्कीस २१ जून पूरी की हैं वह भी बिल्कुल साथ साथ. " साथ साथ का यह साथ तुम्हारे सिर पर नीले अम्बर सा छा जाए , इसी लिए यह नीला स्कार्फ! " अभि की साझी सरगोशी सारा को कुछ ऐसे भिगो गयी मानो कल ही की बात हो। उँह! मोहब्बत कुछ नहीं होती , रिश्ते ज़रूरतों पर टिके होते हैंऔर एक दिन जब आपकी ज़रूरत नहीं रहती , किसी को आपसे मुहब्बत नहीं रहती। उसने सिर झटका और अपनी सोंच परे फेंकी. फेंकते फेंकते भी जैसे एक ख्याल चिपक ही गया। उसकी चिपचिपाहट से आखें जैसे जलने लगीं और उनमे से गर्म गर्म पानी सा आता महसूस होने लगा. ये स्कार्फ उसके साथ हमेशा रहता था , जब कुछ नहीं था तो क्यों रहता था ?
समीक्षा , अभिषेक , सारा और नितिन बचपन से दूसरे के साथी थे. जिस फैक्टरी में अभिषेक और समीक्षा के पिता क्रमशः मैनेजर और जी. एम. थे सारा और नितिन के पिता उसी कंपनी के द्वितीय श्रेणी कर्मचारी। यह वह दौर नहीं था जबकि पब्लिक स्कूलों, या अंग्रेज़ी स्कूलों की भरमार थी। केंद्र सरकार का उपक्रम होने से इस फैक्ट्री के स्कूल में कर्मचारियों के बच्चों की शिक्षा का निशुल्क प्रबंधन था इसी से सब साझे पढ़े थे. सारा और अभिषेक की माताओं को पति के स्टेटस की खातिर अपनी फिगर, किटी पार्टी के मैन्यू सी ही मैंटेन करनी होती थी, इसी से घर नौकरों के हवाले था और बच्चे नैनी के। किन्तु समीक्षा और नितिन मध्यम वर्गीय परिवारों के वे बच्चे थे जिनमे घर छोटा होने से, बच्चों के साँसों की रफ़्तार भी मातापिता तक स्वयं पहुँच जाया करती थी. वे बच्चों जो प्रेम की ऊष्मा और आत्मीयता की लौ से ऊर्जा लेते हैं प्राय: