आवारगी
मंगलवार, 31 अगस्त 2010
अब मेरे दिल पे कोइ तीर नही
घर की दीवार पे तस्वीर नही
आन्ख
खुलते
ही मिलेङ्गे आन्सु
ओर कुछः ख्वाब् की ताबीर नही
वक्त् की कैद भी बाकी न रही
अब तो लमहो की भी ज़न्जीर् नही
कोइ आ जाए तो बन जाता है
वरना दिल की तो कोइ
तामीर नही
मोहम्मद अलवी
सोमवार, 16 अगस्त 2010
आवारगी
फिरते हैं कब से दर- ब- दर
अब इस नगर अब उस नगर
जाएं तो अब जाएं किधर
मै
और मेरी आवारगी
मै
और मेरी आवारगी
यह ब्लॉग और इसकी रचनात्मकता
जावेद अख्तर साहब को नज़र.....जिनके
इस नगमे
ने मुझे ब्लॉग लिखने को प्रेरित किया
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